मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं-manushy apne bhagy ka nirmata swayam

 

मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं-manushy apne bhagy ka nirmata swayam



 मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं-manushy apne bhagy ka nirmata swayam|man is architect of his own fate

मनुष्य अपने भाग्य का निर्माण स्वयं कर सकता है, आवश्यकता है उसे कर्म करने की। हम जिस राह में बढ़ रहे हैं और उस राह में जाना हमने निश्चित कर लिया है। तो किसी की मजाल नहीं कि वह हमें रोक सके। दृढ़ इच्छाशक्ति ,धैर्य और संकल्प के साथ आवश्यकता है आगे बढ़ने की।

हमें कलेक्टर बनना है ,डॉक्टर बनना है, अच्छे पद प्राप्त करना है। लेकिन कलेक्टर बनने के लिए, डॉक्टर बनने के लिए,कर्म करना पड़ेगा कर्म है पढ़ना पड़ेगा , ज्ञान का अर्जन करना पड़ेगा। केवल भाग्य के सहारे ही नहीं बैठना है। कर्म के द्वारा भाग्य बदला जा सकता है। आवश्यकता है सही दिशा में कर्म करने का हम जैसा कर्म करेंगे उसका फल भी हमें वैसा ही प्राप्त होगा। (इसको भी पढ़ें -रोगमुक्त जीवन कैसे जियें )

कर्म के द्वारा भाग्य का निर्माण किया जा सकता है। और कर्म मनुष्य के हाथ में है। भाग्य मनुष्य के हाथ में नहीं है लेकिन कर्म मनुष्य के हाथ में है। अच्छे कर्मों के द्वारा सही दिशा में सकारात्मक कर्म के द्वारा भाग्य बनाया जा सकता है अपने भाग्य का स्वयं निर्माण किया जा सकता है।

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भाग्य क्या है-BHAGY (LUCK) KYA HAI

अपनी गलतियों को छिपाने का सबसे बड़ा साधन भाग्य। कर्म हम नहीं करेंगे दोस हम भाग्य को देंगे। माना कि हमारे पूर्व के कुछ ऐसे कर्म थे ,और उन संचित कर्मों के आधार पर ही हमारा जन्म इस संसार में हुआ। वह स्थिति चाहे अच्छी हो या बुरी हो।

लेकिन ईश्वर ने हमें कर्म करने के लिए स्वतंत्र किया है। हम अच्छे कर्मों के द्वारा अपने भाग्य को बनाते है।हम अपने कर्म के द्वारा अपनी स्थितियों और परिस्थितियों को अनुकूल बना सकते हैं उनको अच्छा कर सकते हैं।

और कर्म करने के लिए हम स्वतंत्र हैं इसमें भाग्य कहीं आड नहीं आता है। लेकिन हम अपनी कर्म हीनता के कारण जो बुरी स्थितियां उत्पन्न होती है उनका दोस् भाग्य को दे देते हैं। और दुनिया के सामने रोना रोते हैं कि हमारा भाग्य ही खराब है इसलिए यह ऐसा नहीं हुआ। जबकि हम यह नहीं कहते ,हम यह नहीं सोचते ,कि हमने ऐसा कर्म नहीं किया है जिससे हमारी परिस्थितियां वर्तमान में विपरीत हो गई है ।यदि हम चाहते तो अच्छे कर्म करके ,उस दिशा में सकारात्मक प्रयास करके हम अपना भाग्य बदल सकते थे।

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भाग्य का महत्व-BHAGY KA MAHATV | अपने भाग्य का निर्माता कौन बन सकता है 

भाग्य जीवन में बहुत अधिक महत्व रखता है। अक्सर हम यह देखते हैं ,कि बहुत से लोग काफी प्रयास करने के बाद भी सफल नहीं होते हैं। एक मजदूर जो सारा दिन मेहनत करता है। लेकिन इसके बाद भी उसको दो टाइम की रोटी अच्छी तरह से नसीब नहीं होती। जबकि वह बहुत ही कर्म करता है उसे दुनिया का सबसे धनी व्यक्ति होना चाहिए।

एक पुजारी मंदिर में सारा दिन पूजा पाठ करता है अच्छे कर्म करता है, तो उसे तो दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति होना चाहिए। परंतु ऐसा नहीं होता। क्योंकि वह पूर्ण रूप से भाग्य के वशीभूत होकर बैठा रहता है।वह या नहीं सोचता कि मात्र भाग्य से ही सब कुछ नहीं होता कर्म भी करना चाहिए कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है। भाग्य एक वह ताला है जिसकी एक कुंजी परमात्मा के हाथ में है और दूसरी कुंजी कर्म के हाथ में है।

परमात्मा अपनी चाबी बार-बार आपके भाग्य के ताले में लगा रहा है, लेकिन आप अपनी कर्म रूपी चाबी उस ताले में नहीं लगाते हैं इसलिए वह ताला बंद है। जब तक कर्म रूपी चाबी उस ताले में नहीं लगेगी तब तक भाग्य का ताला बंद रहेगा। क्योंकि व्यक्ति कर्म करने के लिए स्वतंत्र है उसे कर्म करना चाहिए।

 कर्म के द्वारा वह अपने भाग्य को बदल सकता है। वह अपने संचित किए गए कर्मों के आधार पर जो भी फल भोग रहा है।वर्तमान में कर्म करके उन कर्म बंधनों से मुक्ति को प्राप्त कर सकता है।

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भाग्य पर विश्वास करना चाहिए या कर्म पर-BHAGY PAR VISHWASH KARNA CHAHIYE YA KARM PAR

जो लोग कर्म करना नहीं जानते, या  कर्म करना नहीं चाहते वह लोग भाग्य पर विश्वास करते हैं। और भाग्य के सहारे ही बैठे रहते हैं। क्योंकि गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि भाग्य उनका ही साथ देता है ,जो कर्म करते हैं। कर्म हीन व्यक्ति का भाग्य साथ नहीं देता।

एक छोटा सा बालक जब यह कहता है कि वह बड़ा होकर अधिकारी बनेगा। तब सुनने वाला व्यक्ति उससे पूछता है ,कि तुम अधिकारी क्यों बनोगे  तब वह कहता है कि उसके मन में यह जिज्ञासा  पैदा होती है  कि अधिकारी बड़ा आदमी होता है उसके पास गाड़ी ,घर ,बंगला नौकर ,चाकर सब कुछ होते हैं।

और तब उस बच्चे को उत्तर मिलता है ,कि यदि तुम सही दिशा में सार्थक प्रयास करोगे तो एक न एक दिन तो अवश्य ही उच्च अधिकारी बनोगे। क्योंकि कर्म ही हमारे बस में है और उन कर्मों का फल हमारे बस में नहीं है। इसलिए कर्म करते रहना चाहिए। भाग्य की चिंता को छोड़कर कर्म करना चाहिए।

तुलसीदास जी ने रामायण में एक चोपाई लिखी है

करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान

इसलिए कर्म करते रहिए कर्म करते करते एक न एक दिन उसका फल अवश्य मिलेगा। कर्म फल कोई खेल का मैदान नहीं है।जब हम खेल के मैदान में कोई खेल खेलते हैं तो उसमें एक की हार होती है ,और एक की जीत होती है।

लेकिन कर्म एक ऐसी विधा है कर्म करने वाले व्यक्ति की कभी हार नहीं होती उसकी विजय ही सुनिश्चित है। कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां पैदा होती है ,कि उन परिस्थितियों के आगे हम मजबूर हो जाते है। अपने आप को असहाय महसूस करने लगते हैं। और अपना कर्म करना छोड़ देते हैं। यह हमारी मानसिकता की हार है ।हमारे कर्मों की हार नहीं है। क्योंकि कर्म तो हमेशा बिजय ही देता है।

जिस प्रकार हम किसी पेड़ का बीज बोते हैं ,और उसमें लंबे समय तक पानी डालते हैं। उसके फल आने में समय लगता है।लेकिन फिर भी हम हार नहीं मानते हैं। हम कर्म करते रहते हैं। पानी डालते रहते हैं। फिर एक दिन उससे फल प्राप्त हो जाता है।

उस पेड़ के बीज को बोलना हमारा संकल्प है।और उसमें पानी डालना उसको सींचना हमारा कर्म है। और उस पेड़ से फल को प्राप्त कर लेना हमारा कर्मफल है।

भाग्य का कोई रूप नहीं होता, उसका कोई आकार नहीं होता, उसको कोई देख नहीं सकता ,और न ही हम अपनी इंद्रियों के द्वारा उसको अनुभव कर सकते हैं। हमारे जीवन की आज की व्यवस्था कल के कर्मों का फल है। और हमारा कल आज के कर्मों का फल होगा। यही सत्य है। इसलिए भाग्य के सहारे न बैठ कर के कर्म करना चाहिए कर्म के द्वारा हम अपने भाग्य को बना सकते हैं।

मनुष्य का भाग्य कौन लिखता है- MAUSHY KA BHAGY KAUN LIKHTA HAI

मनुष्य का भाग्य उसके कर्मों के आधार पर होता है। कर्म के द्वारा भाग्य बनता और बिगड़ता है। और कर्म करने के लिए मनुष्य स्वतंत्र होता है। कर्म मनुष्य के हाथ में होता है।

ईश्वर पर विश्वास रखिए और निरंतर कर्म करते रहिए कर्म के द्वारा भाग्य बनता है।आप अपने कर्म से अपना भाग्य बदल सकते हैं ।

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