भगवान श्री कृष्ण की 16 कलाएं कौन कौन सी है | 64 गुण कौन से हैं

 भगवान श्री कृष्ण की 16 कलाएं कौन कौन सी है | 64 गुण कौन से हैं

दोस्तों नमस्कार

आइए जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण की 16 कलाएं व 64 गुण कौन-कौन से थे जितनी भी अवतारी शक्तियां हुई हैं ,उन शक्तियों की सामर्थ्य को समझने के लिए कलाओं को आधार माना गया है। भगवान श्री कृष्ण 16 कलाओं के साथ-साथ 64 गुणों से भी संपन्न थे।

आइए जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण की 16 कलाएं। श्रीमद् भागवत के अनुसार 16 कलाओं में अवतार की पूरी सामर्थ्य खिल उठती है।

भगवान श्रीकृष्ण की सोलह कलाएँ |भगवान श्री कृष्ण को 16 कलाओं का अवतार कहा गया है

भगवान श्री कृष्ण की 16 कलाएं कौन कौन सी है | 64 गुण कौन से हैं


भगवान श्री कृष्ण की अवतार के समय यह सभी कलाएं प्रकट हुई थी। इन कलाओं के नाम है।

श्री कृष्ण की 16 कलाओं के नाम 

1-श्री

प्रथम कला के रूप में धन संपदा को स्थान दिया गया है ।जिस व्यक्ति के पास अपार धन और आत्मिक रूप से भी धनवान हो। जिसके घर में कोई भी खाली हाथ न जाए वह प्रथम कला से संपन्न माना जाता है।यह कला भगवान श्रीकृष्ण में मौजूद है।

2-भू

जिस व्यक्ति के पास पृथ्वी का राज्य भोगने की क्षमता है। पृथ्वी के एक बड़े भूभाग पर जिस का अधिकार है ,और उस क्षेत्र में रहने वाले जिसकी आज्ञाओं का सहजता से पालन करते हैं। अचल संपत्ति का मालिक होता है भगवान श्री कृष्ण ने अपनी योग्यता से द्वारिका पुरी की स्थापना की इसलिए यह कला भी इनमें मौजूद है।

3-कीर्ति

जिसके मान सम्मान और यश कीर्ति से चारों दिशाओं में गूंज हो।जिसके प्रति लोग स्वता ही श्रद्धा और विश्वास रखते हों।तीसरी कला से संपन्न होता है ।भगवान श्रीकृष्ण में यह कला भी मौजूद है। लोग सहर्ष श्री कृष्ण की जय जय कार करते हैं।

4-इला

चौथी कला का नाम इला है जिसका अर्थ है मोहक वाणी। भगवान श्रीकृष्ण में यह कला भी मौजूद है, कि उनकी वाणी मन को मोहने वाली है। पुराणों में ऐसा भी उल्लेख मिलता है, कि भगवान श्रीकृष्ण की बातों को सुनकर अत्यंत क्रोधी व्यक्ति भी अपनी सुध बुध  खो कर शांत हो जाता था। उसके मन में भक्ति की भावना जाग जाती थी।यशोदा मैया के पास शिकायत करने वाली गोपिया भी श्री कृष्ण की वाणी सुनकर शिकायत भूलकर तारीफ करने लगती थी।

5-लीला

भगवान श्री कृष्ण की पांचवी कला का नाम है लीला। लीला का अर्थ होता है आनंद। भगवान श्री कृष्ण को लीलाधर के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि उनकी बाल लीलाओं से लेकर जीवन की घटना रोचक और मोहक है।इनकी लीला करने वाली कथाओं को सुनकर कामी व्यक्ति भी भावुक और विरक्त हो जाता है।

5-कांति

जिसके रूप से स्वता ही मन आकर्षित होने लगे और प्रसन्न होने लगे।जिसके मुख् मंडल को देखकर बार-बार उसी को देखने का मन करने लगे वह छठी कलाओं से संपन्न माना जाता है।

भगवान श्री कृष्ण की इसी कला के कारण पूरे ब्रजमंडल की गोपियां उनकी छवि को देखकर मोहित हो जाती थी। और उन को पति के रूप में पाने की कामना करने लगती थी।

7-विद्या

भगवान श्री कृष्ण वेद वेदांग के साथ ही संगीत कला में भी पारंगत थे। राजनीति एवं कूटनीति श्री कृष्ण में भरी पड़ी थी। इसी कला का नाम विद्या है।

8-विमल

जिसके मन में किसी भी प्रकार का छल कपट न हो वह आठवीं कला से युक्त माना जाता है।भगवान श्री कृष्ण सभी के प्रति समान व्यवहार रखते थे, उनके लिए न कोई छोटा था और न बड़ा था। महारास के समय भगवान ने अपनी इसी कला का प्रदर्शन किया था। इस समय इन्होंने राधा और गोपियों के बीच कोई फर्क नहीं समझा। सभी के साथ समान भाव से नृत्य करते हुए सबको आनंद प्रदान किया।

9-उत्कर्षिनी

महाभारत के युद्ध के समय श्री कृष्ण ने नवी कला का परिचय देते हुए युद्ध से विमुख अर्जुन को युद्ध करने के लिए प्रेरित किया और अधर्म पर धर्म की विजय पताका लहराई।नवी कला के रूप में प्रेरणा को स्थान दिया गया जिसमें इतनी शक्ति मौजूद हो, कि लोग उसकी बातों को लेकर प्रेरित हो जाए।

10-ज्ञान

भगवान श्री कृष्ण ने जीवन में कई बार विवेक का परिचय देते हुए समाज को नई दिशा प्रदान की। जो 10 वीं कला का उदाहरण है।गोवर्धन पर्वत की पूजा और महाभारत के युद्ध को टालने के लिए दुर्योधन से 5 गांव मांगने का विचार कृष्ण के विवेक का परिचय देता है।

11-क्रिया

11 वीं कला का स्थान क्रिया को प्राप्त है।भगवान श्री कृष्ण इस कला से भी संपन्न थे जिनकी इच्छा मात्र से दुनिया का हर काम हो सकता था ,वह कृष्ण सामान्य मनुष्य की तरह कर्म करते हैं और लोगों को कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। महाभारत के युद्ध के समय भले कृष्ण ने युद्ध ना किया हो, लेकिन अर्जुन के सारथी बनकर युद्ध का संचालन किया।

12-योग

जिसने अपने मन को केंद्रित कर लिया हो ।आत्मा में लीन कर लिया हो वह 12वीं कला से संपन्न माना जाता है।

भगवान श्री कृष्ण को योगेश्वर कहा गया है वह उच्च कोटि के योगी थे। अपने योग बल से श्री कृष्ण ने माता के गर्भ में पल रहे परीक्षित की  ब्रह्मास्त्र से रक्षा की थी । मृत गुरु पुत्र को पुनर्जीवन प्रदान किया।

13-प्रहवि

13 वी कला का नाम प्रहवि है।इसका अर्थ विनय होता है। भगवान श्री कृष्ण संपूर्ण जगत के स्वामी है। संपूर्ण सृष्टि का संचालन इनके हाथों में है ,फिर भी इनमें करता का अहंकार नहीं है। गरीब सुदामा को मित्र बनाकर छाती से लगा लेना।महाभारत युद्ध में विजय का श्रेय पांडवों को दे देते हैं। सभी विद्याओं में पारंगत होते हुए भी श्रेय गुरु को देते हैं ज्ञान प्राप्ति के लिए।

14-सत्य

भगवान श्री कृष्ण की 14 हवी  कला का  नाम सत्य है।श्री कृष्ण कटु सत्य बोलने से भी परहेज नहीं रखते और धर्म की रक्षा के लिए सत्य को परिभाषित करना भी जानते हैं यह कला सिर्फ श्रीकृष्ण में है।जब शिशुपाल की माता ने कृष्ण से पूछा कि शिशुपाल का वध क्या तुम्हारे हाथों होगा, तो निसंकोच कह देते हैं कि यह विधि का विधान है और मुझे ऐसा करना पड़ेगा। रिश्तो की डोर में बंधे होते हुए भी श्रीकृष्ण झूठ नहीं बोलते।

15-इसना

15 वी कला का नाम इसना है। इस कला का तात्पर्य है कि व्यक्ति में उस गुण का मौजूद होना जिससे वह लोगों पर अपना प्रभाव स्थापित कर पाता है। आवश्यकता पड़ने पर लोगों को अपने प्रभाव का एहसास दिलाता है। श्री कृष्ण ने कई बार जीवन में अपने इस कला का प्रयोग किया।

16-अनुग्रह

बिना प्रत्युकार की भावना से लोगों का उपकार करना यह 16 हवीं कला है।भगवान श्री कृष्ण को कभी भक्तों से कुछ पाने की उम्मीद नहीं रखते हैं। लेकिन जो भी इनके पास इनका बनकर आता है, उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं।

यह तो भगवान श्री कृष्ण की 16 कलाएं थी अब आइए जानते हैं कि श्रीकृष्ण में 64 गुण कौन-कौन से मौजूद थे

1-नृत्य  2- वाद्य 3- गायन 4- नाट्य 5- इंद्रजाल 6-नाटक 7-सुगंधित चीजें8- फूलों के आभूषणों से श्रृंगार करना 9- बेताल आदि को बस में रखने की विद्या 10-बच्चों के खेल 11- विजय प्राप्त कराने वाली विद्या 12- मंत्र विद्या 13- शकुन अपशकुन जानना 14- रत्नों को अलग-अलग प्रकार के आकारों में काटना 15- कई प्रकार के मात्रका यंत्र बनाना 16- सांकेतिक भाषा बनाना 17- जल को बांधना 18- बेल बूटे बनाना 19- चावल और फूलों से पूजा के उपहार की रचना करना 20- फूलों की सेज बनाना 21- तोता मैना आदि की बोलियां बोलना 22- वृक्षों की चिकित्सा 23- भेड़ मुर्गा आदि को लड़ाने की रीत 24- उच्चाटन की विधि 25- घर आदि बनाने की कारीगरी 26- गलीचे दरी  बनाना 27- बढ़ई की कारीगरी 28- पट्टी बेंत आदि बनाना 29- तरह-तरह के खाने की चीजें बनाना 30-हाथ की फुर्ती के काम 31- चाहे जैसा बेस धारण कर लेना 32- द्यूत क्रीणा 33- तरह तरह पीने के पदार्थ बनाना 34- समस्त छंदों का ज्ञान 35- वस्त्रों को छिपाने या बदलने की विद्या 36- दूर के मनुष्य वस्तुओं का आकर्षण 37- कपड़े और गहने बनाना 38- हार माला आदि बनाना 39- विचित्र सिद्धियां दिखलाना 40- कान और चोंटी के फूलों के गहने बनाना 41- कठपुतली बनाना  42- प्रतिमा आदि बनाना 43- पहेलियां बुझाना 44- सिलाई का काम 45- बालों की सफाई का कौशल 46- मुट्ठी की चीज या मन की बात बता देना 47- कई देशों की भाषा का ज्ञान 48- काव्य को समझ लेना 49- सोने चांदी आदि धातुओं तथा हीरे पन्ने  रत्नों की परीक्षा 50- सोना चांदी आदि बना लेना 51- मणियों के रंग को पहचानना 52- खानों की पहचान 53- चित्रकारी, दांत वस्त्र और अंगों को रंगना 54-सैया रचना 55- मणियों की फर्श बनाना 56- कूटनीति 57-ग्रंथों को पढ़ाने की चतुराई 58- नई-नई बातें निकालना 59- समस्या पूर्ति करना 60- समस्त कोशो का ज्ञान 61- छल से काम निकालना 62- मन में कटक रचना करना 63-कानों के पत्तों की रचना करना यानी शंख हाथी दांत सहित कई तरह के कान के गहने तैयार करना 64 समस्त विद्या में पारंगत 

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