मधुमेह रोग की सरल चिकित्सा |योग करें मधुमेह से बचें –madhumeh ki saral chikitsha,yog karen madhumeh se bachen

 

मधुमेह रोग की सरल चिकित्सा |योग करें मधुमेह से बचें –madhumeh ki saral chikitsha,yog karen madhumeh se bachen

मधुमेह एक चयापचय संबंधी रोग है।इस रोग की प्रमुख समस्या शरीर की कोशिकाओं द्वारा गुलकोज का सही उपयोग नहीं कर पाना है। शर्करा युक्त या माँड  (स्टार्च ) पदार्थों को कार्बोहाइड्रेट कहते हैं।इन्हें भोजन द्वारा ग्रहण करने पर पाचन क्रिया द्वारा पचा कर मुख्यता गुलकोज में परिवर्तित कर दिया जाता है।


 यह ग्लूकोज आंतो  से अवशोषित होकर यकृत( लिवर) में जाता है। तथा वहां से आवश्यक मात्रा में रक्त के माध्यम से पूरे शरीर में प्रवाहित कर दिया जाता है। इसे इंसुलिन हार्मोन संचालित करता है। पैंक्रियाज से निकलने वाले इस हारमोंस की कमी से ही मधुमेह अर्थात रक्त में ग्लूकोज की मात्रा में वृद्धि होती है।

मधुमेह रोग की सरल चिकित्सा |योग करें मधुमेह से बचें –madhumeh ki saral chikitsha,yog karen madhumeh se bachen




मधुमेह के कारण-madhumeh ke karan

इस रोग के प्रमुख दो कारण माने जाते हैं।

 प्रथम कारण जैविक

 एवं द्वितीय कारण मानसिक है

जैविक क्रिया में अनियंत्रित जीवन चर्या संबंधी खानपान  के फल स्वरुप पाचन प्रणाली निष्क्रिय एवं निर्जीव सी हो जाती है। मोटापा, अति भोजन एवं व्यायाम की कमी आदि इसी श्रेणी में आते हैं l जो लोग शारीरिक कार्य नहीं करते हैं, शरीर पूरी तरह से निष्क्रिय रहता है उन लोगों में यह रोग अधिकतर देखा गया है।

शक्कर , अधिक मिष्ठान तथा कार्बोहाइड्रेट युक्त पदार्थों का भोजन में अत्यधिक उपयोग इसके मुख्य कारण हैं। इन पदार्थों के सेवन से पैंक्रियाज को अत्यधिक मात्रा में इंसुलिन उत्पादन करने हेतु दबाव पड़ता है।

 लंबे समय तक यह स्थिति बनी रही तो पैंक्रियाज की क्रियाशीलता धीमी पड़ जाती है। अधिक रक्त शर्करा के उद्दीपन के बावजूद भी इंसुलिन का स्राव कम हो जाता है।

इंसुलिन की कमी से शर्करा का चयापचय धीमा पड़ जाता है तथा शर्करा रक्त में ही लंबे समय तक खुले रहने पर बाध्य हो जाती है। इसी अवस्था को उच्च रक्त शर्करा स्तर ,हाई शुगर लेवल कहते हैं।

 इसकी वजह से गुर्दे किडनी से अधिक शर्करा छानकर पेशाब से निकलने लगती है। यह शर्करा पेशाब में अपने साथ जल खींच कर ले जाती है। इससे रोगी को बार बार पेशाब करना पड़ता है ,तथा शरीर में जल की कमी से बार-बार प्यास लगती है।त्वचा के संक्रमण इत्यादि रोग घेर लेते हैं। कटे घाव ठीक से नहीं भरते तथा दृष्टि दोष होने लगता है।

मधुमेह का दूसरा कारण तनाव से संबंधित है

मानसिक तनाव की अधिकता से एड्रिनल ग्रंथि उत्तेजित हो जाती है। इसके कारण इस ग्रंथि से कर्टिको एस्टेरॉइड हार्मोन का स्राव बढ़ जाता है। इसे स्ट्रेस हार्मोन भी कहते हैं, जो लगातार रक्त प्रवाह में घूलता रहता है।यह हार्मोन शरीर के रक्त प्रवाह में ग्लूकोज छोड़ने के लिए एक शक्तिशाली उत्प्रेरक का कार्य करता है। अब इस अधिक ग्लूकोज को कोशिकाओं के बेहतर पहुंचने के लिए अधिक इंसुलिन की आवश्यकता पड़ती है। इससे पैंक्रियाज पर दबाव बढ़ जाता है।इस प्रक्रिया के कारण इस ग्रंथि की कार्य क्षमता कमजोर पड़ जाती है तथा मधुमेह के लक्षण प्रकट हो जाते हैं। तनाव से उत्पन्न स्थिति जैविक कारणों की अपेक्षा अधिक खतरनाक होती है।

मधुमेह के प्रकार

यह रोग दो प्रकार का होता है

बच्चों में एवं बड़ों में।बच्चों के मधुमेह को जुवेनाइल डायबिटीज तथा बड़ों के मधुमेह  को मेच्योरिटी ऑनसेट डायबिटीज कहते हैं।

बच्चों का मधुमेह

कभी का यह दुर्लभ रोग आज के आधुनिक समाज में व्याप्त दूषित  रहन-सहन के कारण बच्चों में बढ़ता जा रहा है। यह रोग जेनेटिक वायरल इंफेक्शन या अत्यधिक कष्टप्रद ,भावनात्मक पीड़ा एवं मानसिक आघात के कारण भी होता है। इससे इंसुलिन हार्मोन का स्राव आंशिक या पूर्ण रुप से बंद हो जाता है। इसके रोगी अल्प वयस्क दुबले-पतले, संवेदनशील एवं अति तार्किक होते हैं।

बड़ों का मधुमेह

प्रौढ़ावस्था का मधुमेह यह रोग अधिकतर  उन्हें होता है, जो तनावग्रस्त ,मोटे, शारीरिक रूप से कम क्रियाशील हो तथा जिनके भोजन में शक्कर, स्टार्च युक्त एवं वसा युक्त पदार्थों की अधिकता हो। पाचन तंत्र पर पड़ने वाले इस दीर्घकालीन दबाव के कारण यकृत एवं अग्नाशय (पैंक्रियाज) की ग्लूकोज नियंत्रण प्रणाली में क्रमिक अवनति हो जाती है।इससे न केवल इंसुलिन उत्पादन ही प्रभावित होता है बल्कि सभी शारीरिक ऊतक  इंसुलिन के प्रभाव के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं।

मधुमेह के खतरे-madhumeh ke khatre

रक्त से शर्करा को कोशिकाओं के भीतर पहुंचाने हेतु इंसुलिन पासपोर्ट की तरह कार्य करती है। इसके बिना हमारे शारीरिक उत्तक ग्लूकोज ग्रहण नहीं कर सकते।इंसुलिन की कमी से शर्करा रक्त प्रवाह में प्रवाहित होती रहती है, फिर भी इसका उपयोग नहीं हो पाता है।ऐसी स्थिति में कोशिकाएं ग्लूकोस के स्थान पर बसा, लिपिड का ऊर्जा स्रोत के रूप में प्रयोग करना प्रारंभ कर देती हैं।

 यकृत (लीवर ) से भी अधिक मात्रा में बसा एवं वसा युक्त पदार्थों का उत्सर्जन होने लगता है। यह वसा रक्त नलिकाओं के भीतर जमने लगती है।

इससे हृदय रोग, उच्च रक्तचाप ,अंधापन, गुरुदे व किडनी की खराबी, धमनियों का कड़ापन, नपुंसकता आदि रोग पनपने लगते हैं। मस्तिष्क तथा अन्य तंत्रिका ऊपर चयापचय मेटाबॉलिज्म असंतुलित होने से नसों की कमजोरी, अंगों का सुस्त होना, लकवा आदि के लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं।

 प्रतिरक्षा प्रणाली के कमजोर पड़ने पर संक्रमण ,फोड़े फुंसियां ,खुजली घावों का न भरना। उनमें पीव  बढ़कर लंबे समय तक रहना तथा अंगों का सड़ना आदि रोग उत्पन्न होते हैं। कभी-कभी तो रक्त में अमलो की मात्रा अधिक होने पर गहरी बेहोशी तथा अचानक मृत्यु होने का भी खतरा बना रहता है।

औषधीय चिकित्सा-aushdheey chikitsha

मधुमेह के रोगी के लिए प्रतिदिन भोजन के पहले इंसुलिन की सुई लेना तथा जीवन पर्यंत इसी पर

निर्भर रहना अत्यंत कष्ट दाई परिस्थिति है। इसी प्रकार औषधियों के अनेक दुष्प्रभाव भी हैं। इंसुलिन अधिक मात्रा में लेने से रक्त में शर्करा का स्तर बहुत नीचे चला जाता है।क्योंकि मस्तिष्क की कोशिकाएं मात्र गुलकोज का ही उपयोग कर सकती हैं।वह कुछ समय से अधिक ग्लूकोज की कमी को सहन नहीं कर सकती।

यदि रक्त में ग्लूकोज की मात्रा नीचे चली जाए तो मस्तिष्क की कोशिकाएं कार्य करना बंद कर देती हैं और व्यक्ति बेहोश हो जाता है। ऐसीस्थिति में मिठाई शरबत या शक्कर का सेवन करना चाहिए। यह एक तत्कालिक एवं वैकल्पिक व्यवस्था है। स्थाई उपचार के लिए योगिक चिकित्सा ही सरल विकल्प है।

योगिक चिकित्सा-yogik chikitsha

योग के अभ्यास से पैंक्रियास ग्रंथि अपनी अधूरी बीटा कोशिकाओं को पुनर्जीवित करती है। इनके सक्रिय होने का तात्पर्य है, इंसुलिन की उत्पादन क्षमता में सुधार तथा रक्तशर्करा के साथ समयानुसार संतुलन।

पवनमुक्तासन के अभ्यास से प्रत्येक मांस पेशी तथा संधियों से अम्ल व अवरोध दूर हो जाते हैं तथा प्राण शक्ति का प्रभाव अधिक सुगमता से होने लगता है।सूर्य नमस्कार का अभ्यास सभी ग्रंथियों को सुचारू ढंग से चलाने तथा प्राण शक्ति के उत्पादन होने के कारण चयापचय को पुनः संतुलित करता है।

प्रत्येक रोगी की स्थिति दूसरों से भिन्न होती है। लोगों को अपनी विशिष्ट चिकित्सा के लिए योग चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए, परंतु सामान्य अभ्यासक्रम की रूपरेखा के अनुसार यह रोग काफी हद तक ठीक किया जा सकता है।

पहले सप्ताह में यह योग करें

पवनमुक्तासन

प्राणायाम

शवासन में लेट कर उदर स्वसन

दूसरे सप्ताह में

उपर्युक्त आसन  जैसे

 नौका संचालन

 चक्की चलाना

 रस्सी खींचना

 लकड़ी काटना

प्राणायाम

योग निद्रा

ध्यान

तीसरे सप्ताह में

सूर्य नमस्कार

वज्रासन

प्राणायाम

चौथे सप्ताह में

सूर्य नमस्कार 12 चक्र तक

सर्वांगासन

 हलासन

 मयूरासन

 भुजंगासन

 गोमुखासन

प्राणायाम

ध्यान

अन्य उपयोगी सावधानियां

भोजन

सात्विक शाकाहारी एवं सुपाच्य होना चाहिए इसमें कार्बोहाइड्रेट, स्टार्च, शक्कर अत्यधिक न्यून मात्रा में होनी चाहिए। चावल, आलू तथा सभी मीठे पदार्थ बंद कर देनी चाहिए। मसाले ,तेल ,दूध या उस से बनी वस्तुओं का कम मात्रा में उपयोग करना चाहिए।चोकर युक्त आटे की रोटी तथा हरी पत्तेदार सब्जियां हल्की उबली हुई अवस्था में लेनी चाहिए। सलाद एवं फल का भी उपयोग किया जाता है।

व्यायाम

प्रतिदिन खुली हवा में टहलना स्वास्थ्य एवं इस रोग के लिए लाभप्रद है।

इंसुलिन

योगाभ्यास के दूसरे सप्ताह से जब रक्त एवं मूत्र परीक्षण से पता चलने पर के रक्त में शर्करा की मात्रा घट गई है, तो धीरे-धीरे इंसुलिन की मात्रा चिकित्सक के निर्देशानुसार कम करते रहना चाहिए।

औषधियां

शर्करा कम करने वाली गोलियां कम करके धीरे-धीरे योगाभ्यास क्रम के दौरान बंद कर देनी चाहिए। इसके विषय में पहले चिकित्सकों से परामर्श कर लिया जाना चाहिए।

समय

योगाभ्यास एवं भोजन की अनियमितता कम से कम 6 महीने तक या लंबी अवधि तक जारी रखना चाहिए। इससे बीमारी की पुनः लौटने की संभावना कम हो जाती है।इस प्रकार योगाभ्यास के नियमित अभ्यास से मधुमेह रोग को नियंत्रित करके उसे ठीक किया जा सकता है।

इसके लिए आवश्यक है कि रोगी को उचित आचार विचार एवं आहार-विहार पर ध्यान देना चाहिए। यदि उपर्युक्त को ध्यान में रखकर नियमित एवं सतत अभ्यास किया जाए तो मधुमेह से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

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