सत्संग क्या है | सत्संग के लाभ | सत्संग कितने प्रकार का होता है | और सत्संग की महिमा क्या है | satsang kya hai ,labh ,prakar,mahima in hindi

 

सत्संग क्या है | सत्संग के लाभ | सत्संग कितने प्रकार का होता है | और सत्संग की महिमा क्या है | satsang kya hai ,labh ,prakar,mahima in hindi



 सत्संग क्या है | सत्संग के लाभ | सत्संग कितने प्रकार का होता है | और सत्संग की महिमा क्या है | satsang kya hai ,labh ,prakar,mahima in hindi

इस लेख में हम  विस्तार पूर्वक उपरोक्त लिखे हुए बिंदुओं की चर्चा करेंगे।जानेंगे कि सत्संग क्या होता है? कितने प्रकार का होता है? सत्संग के लाभ और उसकी महिमा क्या होती है? इन सभी को विस्तार पूर्वक जानेंगे।

सत्संग क्या है? satsang kya hai

सत्संग 2 शब्दों के मेल से बना है सत अर्थात् परमात्मा, संग अर्थात 1 से अधिक लोगों का समूह यानि परमात्मा का संग ,जहां  पर परमात्मा की चर्चा या परमात्मा के बारे में कई संत महात्मा या लोग, ज्ञानी परमात्मा के बारे में चर्चा कर रहे हैं उसके गुणों का गान कर रहे हैं उसके बारे में बात कर रहे हैं वही सत्संग है।

सत्संग कितने प्रकार का होता है? satsang kitne prakar ka hota hai

सत्संग चार प्रकार का होता है।

 पहले नंबर के सत्संग का अर्थ

सत- परमात्मा में प्रेम। सत् यानी परमात्मा और संग यानी प्रेम। यही सर्वश्रेष्ठ सत्संग है।

सत यानि परमात्मा के संग रहना अर्थात परमात्मा का साक्षात दर्शन करके भक्तों का उनके साथ रहना ही सर्वोत्तम सत्संग है यही सत्पुरुष का संग है क्योंकि सर्वश्रेष्ठ सत्पुरुष तो एक भगवान ही है। इस सत्संग के सामने स्वर्ग की तो बात ही क्या है, मुक्ति भी कोई चीज नहीं है। तुलसीदास जी ने इस विशेष सत्संग की महिमा गाई है

तात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरिय तुला एक अंग।

तूल न ताहि सकल मिली जो सुख लव सत्संग।।

हे तात स्वर्ग और मुक्ति के सुख को तराजू के एक पलड़े पर रखा जाए और दूसरे पलड़े पर छण मात्र के सत्संग को रखा जाए तो भी एक क्षण के सत्संग के सुख के समान भी उन दोनों का सुख मिलकर नहीं होता है।

दूसरे नंबर का सत्संग है

भगवान के प्रेमी भक्त  परमात्मा को प्राप्त जीवनमुक्त पुरुष का संग  के लिए प्रयत्नशील कर रहे हैं निरंतर प्रयास कर रहे हैं।

तीसरे नंबर का सत्संग

जिसमे जब व्यक्ति दुखी हुवा तो प्रभु को याद कर लिया , जैसे की द्रोपदी व् गजराज ने किया था ।

चौथे नंबर का सत्संग

 शास्त्रों के स्वाध्याय को कहते हैं जिनमें भक्ति ज्ञान वैराग्य और सदाचार का वर्णन है ऐसे सत शास्त्रों का सदा श्रद्धा और प्रेम पूर्वक पठन-पाठन मनन अनुशीलन करने से भी सत्संग का ही लाभ होता है।

इन सभी सत्संग में पहले नंबर के सत्संग को सर्वश्रेष्ठ माना गया है

भगवान की कृपा से ही मिलता है।संघ प्राप्त होना भी कोई साधारण बात नहीं है। वह भी बड़े ही सौभाग्य से प्राप्त होता है।

पुन्य पुंज बिनु मिलही न संता।

सत्संगति संस्रती कर अंता।।

पुण्य की  पूंजी और  पूर्व के महान शुभ संस्कार के संग्रह से ही महापुरुषों का संग  मिलता है ऐसे सत्संग का फल संसार के आवागमन से यानी जन्म मरण से सर्वथा छूट जाना है ।महात्मा के संग से जैसा लाभ होता है वैसा लाभ संसार के किसी भी संग  से नहीं हो सकता संसार में लोग पारस की प्राप्ति को बड़ा लाभ मानते हैं परंतु सत्संग का लाभ तो बहुत ही विलक्षण है।

सत्संग के क्या लाभ हैं?satsan ke kya labh hai

सत्संग के लाभ

पारस में अरू संत में ,बहुत अंतरा जान।

वह लोहा सोना करें, यह करें आपु समान।।

अर्थात पारस और संत में बहुत अंतर है।पारस लोहे को सोना बना सकता है, परंतु पारस नहीं बना सकता।किंतु संत महात्मा पुरुष तो संग करने वालों को अपने समान ही संत महात्मा बना देते हैं। इसलिए महात्माओं के संग के समान संसार में कोई और लाभ नहीं है।परम दुर्लभ परमात्मा की प्राप्ति महात्माओं के संग से अनायास ही हो जाती है।उच्च कोटि के अधिकारी महात्मा पुरुषों के तो दर्शन,भाषण, स्पर्श और वार्तालाप से भी पापों का नाश होकर मनुष्य परमात्मा की प्राप्ति का पात्र बन जाता है। और उसके सभी पापों का नाश हो जाता है।

साधारण लाभ तो संग करने वाले को समान भाव से होता ही है, चाहे उसे परमात्मा का ज्ञान हो या न हो।

महात्मा का महत्व जान लेने पर तो उनमें श्रद्धा होकर विशेष ज्ञान हो सकता है।

जिस प्रकार किसी कमरे में ढकी हुई अग्नि पड़ी है और उसका किसी को ज्ञान नहीं है,तब भी अग्नि से कमरे में गर्मी आ गई है और ठंढ  निवारण हो रहा है यह सहज लाभ है,वहां जो लोग हैं उनको भी बिना जाने ही मिल रहा है।

पर जब अग्नि का ज्ञान हो जाता है,तब तो वह मनुष्य उस अग्नि से भोजन बनाकर खा सकता है और दीपक जलाकर उसके प्रकाशसे लाभ उठा सकता है। यह दो शक्तियां स्वाभाविक ही है अग्नि का ज्ञान होने पर ही मनुष्य उसकी दोनों शक्तियों से लाभ उठा सकता है ।और यदि अग्नि में यह भाव हो जाता है कि अग्नि साक्षात देवता है।तब तो वह उसमें पुत्र ,धन, आरोग्य ,कीर्ति आदि किसी भी कामना की पूर्ति के लिए श्रद्धा तथा विधि पूर्वक हवन करता है।

तो वह अपनी कामना के अनुसार उससे लाभ उठा लेता है।

और यदि श्रद्धा पूर्वक निष्काम भाव से शास्त्रोक्त विधि से हवन करता है तो वह पुरुष मुक्ति को भी प्राप्त कर लेता है।निष्काम भाव पूर्वक यज्ञ करने से अंतःकरण की शुद्धि हो जाती है और अंतःकरण की शुद्धि होने से स्वाभाविक ही परमात्मा के तत्व का ज्ञान हो जाता है तथा तत्वज्ञान से वह जीवन मुक्त हो जाता है।

ठीक इसी प्रकार किसी को महात्मा पुरुष मिलते हैं तो उनका ज्ञान न रहने पर भी सामान्य भाव से तो लाभ होता ही है। जैसे ढकी हुई अग्नि के द्वारा गर्मी के द्वारा सीत का निवारण हो जाता है।ठीक उसी प्रकार महात्माओं के मिलने पर उनके गुणों से स्वाभाविक प्रभाव से वातावरण की शुद्धि होने के कारण पाप भावना का अभाव तथा उनके गुणों का आभास तो आ ही जाता है।

महात्माओं में उत्तम गुण, उत्तम आचरण और उत्तम भाव होते हैं

उनका ज्ञान भी उच्च कोटि का होता है।उनके संग  से यह सब चीजें किसी ना किसी अंश में बिना जाने पहचाने भी आ ही जाती है। यदि पहचान हो जाती है। और महात्माओं के आलौकिक प्रभाव का ज्ञान हो जाता है। तब तो वह जैसा उसका ज्ञान होता है,उसके अनुसार लाभ उठा लेता है।

 जिस प्रकार भगवान बिना ही कारण सब पर दया और प्रेम करते हैं, ठीक उसी प्रकार महापुरुष भी कृपा तथा प्रेम किया करते हैं। जैसे भगवान में क्षमा, दया ,शांत ,संतोष ,क्षमता ,सरलता ,ज्ञान, वैराग्य आदि अनंत गुणों सहज रूप में होते हैं, वैसे ही महात्माओं में भी होते हैं।

जो ज्ञान के द्वारा ब्रह्मा को प्राप्त होता है तथा ब्रह्मा ही बन जाता है। वह तो परमात्मा से कोई अलग पदार्थ ही नहीं रह जाता। परमात्मा का जो दिव्य स्वरूप, प्रभाव और गुण है। वही महात्मा का महात्मा पन है।महात्मा का शरीर तो महात्मा है नहीं और उसमें जो आत्मा है वह परमात्मा को प्राप्त हो जाता है, परमात्मा से अलग रहता नहीं। अतः परमात्मा का जो दिव्य स्वरूप प्रभाव और गुण है वही महात्मा पन है।

जो प्रेमी भक्त भक्ति के द्वारा भगवान को प्राप्त हो जाता है, उस भक्त में भी भगवान के वह गुण आ जाते हैं, जिनकी व्याख्या गीता के बारहवें अध्याय में तेरहवें  से 19 में श्लोक तक की गई है।

ज्ञान के द्वारा जो परमात्मा को प्राप्त हो गया है जो ब्रह्मा ही बन गया है उस गुनातीत पुरुष के लक्षण गीता के 14 अध्याय में 22 वे से 25 वें श्लोक तक बताए गए हैं।

उच्च कोटि के अधिकारी महात्मा पुरुषों के तो दर्शन मात्र से भी बहुत लाभ होता है, क्योंकि उससे महात्मा का स्वरूप हृदय में अंकित हो जाता है, जिससे हृदय के पाप नष्ट हो जाते हैं। महात्मा पुरुष दिव्य ज्ञान की एक विलक्षण ज्योति है, वह दिव्य ज्ञान ज्योति समस्त पापों को भस्म कर देती है।महात्मा यदि किसी को स्मरण कर ले या कोई महात्मा का स्मरण कर ले तो उसके मन में  उनकी स्मृति हो जाने से भी पाप नष्ट हो जाते हैं। इसी प्रकार महात्मा का स्पर्श प्राप्त हो जाने से भी पाप नष्ट हो जाते हैं चाहे महात्मा किसी को स्पर्श करें, चाहे वह महात्मा को कोई स्पर्श कर ले।

जिस प्रकार एक और अग्नि पड़ी हुई है दूसरी और घास की ढेरी पड़ी है।तो अग्नि की चिंगारी उड़कर घास पर गिरती है तो घास जलकर अग्नि बन जाती है।और घास उड़कर अग्नि में गिरती है तो भी घास अग्नि बन जाती है। अग्नि अग्नि ही रहती है। वैसे ही अग्नि की भांति महात्माओं में सदा ज्ञान की प्रज्वलित ज्योति रहती है।

उस ज्ञान की अग्नि के द्वारा महात्मा पुरुषों के तो पाप पहले ही नष्ट हो चुके हैं,किंतु जिनका उनके साथ किसी भी प्रकार का संसर्ग हो जाता है उसके भी पाप नष्ट होते चले जाते हैं।फिर जो महात्माओं के साथ वार्तालाप करके उनके बताए हुए सिद्धांतों के अनुसार साधन करता है उनका संसार से उद्धार हो जाए इसमें तो कहना ही क्या है?

 

सत्संग सुनने से क्या लाभ होता है? satsang sunne se kya labh hota hai

सत्संग सुनने से मन के समस्त विकार नष्ट हो जाते हैं उसे परमात्मा का ज्ञान हो जाता है परमात्मा में प्रेम हो जाता है और वह परमात्मा के बनाए हुए सिद्धांतों का अनुसरण करने लगता है जिससे उससे जीवन की ज्योति सदा प्रकाशित रहती है।

एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध।

तुलसी संगत साधु की, कटे कोटि अपराध।।

एक घड़ी, आधी घड़ी ,आधी में भी आधी घड़ी का जो महात्मा पुरुषों का संघ है, उसका इतना महात्म है कि उससे करोड़ों अपराध कट जाते हैं। यह समझे कि एक घड़ी 24 मिनट की होती है, आधी 12 मिनट की और आधी से भी आधी यानी चौथाई 6 मिनट की।

महात्मा शब्द से यहां किसी आश्रम से संबंध नहीं है।कोई गृहस्थ हो या सन्यासी हो ,वानप्रस्थ हो या ब्रह्मचारी हो। जिनमें महात्माओं के लक्षण ,जो गीता में बताए गए हैं ,मिलते हैं वही महात्मा है।

महात्माओं की महिमा जितनी भी गाई जाए कम है। जिस प्रकार गंगा जी की महिमा कितनी भी गई जाए कम है। गंगा सारे संसार का उद्धार कर सकती है। किंतु कोई यदि गंगा में स्नान करने ही न जाए,गंगाजल पान करें ही नहीं ,तो इसमें गंगा जी का क्या दोष है।

इसी प्रकार कोई महापुरुष से लाभ नहीं उठाए तो उसमें महापुरुष का कोई दोष नहीं है।

एक गंगा से ही सब का कल्याण हो सकता है। क्योंकि शास्त्र में कहा गया है कि गंगा में स्नान करने से, गंगा जी के जल का पान करने से मनुष्य के सारे पापों का नाश हो जाता है और आत्मा का उद्धार हो जाता है।

 गंगा की तरह महात्मा पुरुष लाखों-करोड़ों पुरुषों का उद्धार कर सकते हैं और सारे संसार के मनुष्यों का उद्धार होना भी कोई असंभव तो है ही नहीं,हां कठिन अवश्य है क्योंकि उनमें श्रद्धा हुए बिना तो कल्याण हो नहीं सकता और श्रद्धा होना कठिन है।पहली बात तो यह है कि ऐसे महापुरुष संसार में मिलते ही बड़ी कठिनाई से हैं।क्योंकि संसार के करोड़ों मनुष्यों में कोई एक महापुरुष होता है। जैसे गीता में महापुरुषों के बारे में बताया गया है।

हजारों मनुष्य में कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करता है और उन यत्न करने वाले योगियों में भी कोई एक मेरे परायण होकर मुझको तत्व से अर्थात यथार्थ रूप से जानता है।

भगवान को जो तत्व से जानता है वही महात्मा है। प्रथम तो लाखों करोड़ों में कोई एक महात्मा होता है। फिर उसका मिलना भी दुर्लभ है। मिलने पर उसे पहचानना भी कठिन है। महात्माओं को पहचानने की एक साधारण युक्त यह है कि जैसे अग्नि के समीप जाने पर , जाने वाले पर अग्नि का कुछ ना कुछ प्रभाव अवश्य पड़ता है,

वैसे ही महात्मा के समीप जाने से महात्मा का प्रभाव पड़ता है।जैसे सरकार के किसी सिपाही को देखने से सरकार की स्मृति होती है,वैसे ही भगवान के भक्तों के दर्शन से भगवान की स्मृति होती है। जिनका संग करने से अपने में दैवी संपदा के लक्षण आएं, जिनके संग से जिनके साथ वार्तालाप करने से, दर्शन से ,स्पर्श से आत्मा का सुधार हो।

अपने में भक्तों के लक्षण प्रकट होने लगे, गुनातीत पुरुषों के लक्षण आने लगे तो समझना चाहिए कि यह महापुरुष है।जब हम महापुरुषों का संग करने के लिए जाएं तब हम यह समझे कि हम एक ज्ञान के पुंज के सम्मुख जा रहे हैं।

जैसे सूर्य के सम्मुख जाने से अंधकार तो दूर भाग जाता है किंतु अधिक से अधिक प्रकाश होता चला जाता है।

हम देखते हैं कि जब प्रातः काल सूर्य का उदय होता है तब ज्यों-ज्यों सूर्य नजदीक आता है त्यों ही त्यों सूर्य के प्रकाश का अधिक असर पड़ता है।

ठीक उसी प्रकार हम जितने ही महात्माओं के समीप होते हैं हमको उतना ही अधिक ज्ञान का लाभ मिलता है वह एक ज्ञान के पुंज हैं ।उस ज्ञान के पुंज से हमारे अंदर अंधकार का नाश होकर हमारे हृदय में भी ज्ञान के सूर्य का उदय होता है।

अज्ञान के अंधकार का नाश होकर ज्ञान के प्रकाश का उदय होता है।

यह उन महात्माओं या महापुरुषों का प्रभाव है जो भगवान के भेजे  हुए  महापुरुष हैं। अथवा जो महापुरुष परमात्मा को प्राप्त हो चुके हैं, यानी ब्रह्मा में मिल चुके हैं। ऐसे महात्मा परमात्मा ही बन जाते हैं।

इसलिए परमात्मा के गुण प्रभाव उनके गुण प्रभाव हैं, यह समझना ही महात्मा को तत्व से समझना है।वास्तव में महात्मा का आत्मा परमात्मा से अलग नहीं है, पर हम मानते नहीं उसे परमात्मा से भिन्न समझते हैं इसीलिए परमात्मा की प्राप्ति से वंचित रहते हैं।यह समझ तभी आती है जब अंतःकरण की शुद्धि होती है।

Previous
Next Post »