प्रकृति और मानव जीवन में समानताएं
मनुष्य प्रकृति का एक हिस्सा है। प्रकृति व् मनुष्य का जीवन एक दूसरे
पर निर्भर है।
बिना प्रक्रति के मानव के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। प्रकृति शब्द 2 शब्दों से बना है। प्र अर्थात श्रेष्ठ या उत्तम, कृति का
अर्थ होता है रचना, अर्थात हम कह सकते हैं कि ईश्वर के द्वारा बनाई गई एक श्रेष्ठ रचना का नाम
ही प्रकृति है।
यही सृष्टि है ,प्रकृति का परिणाम है जगत , प्रकृति के द्वारा ही समस्त ब्रह्मांड
की रचना की गई है।
प्रकृति दो प्रकार की है।
एक प्राकृतिक प्रकृति
दूसरी मानवीय प्रकृति
प्राकृतिक प्रकृति में पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश
मानवी प्रकृति में मन, बुद्धि और अहंकार
सम्मिलित है।
श्रीमद्भागवत गीता में कहा गया है। कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश
यह पंचमहाभूत मन, बुद्धि ,अहंकार यह आठ प्रकार के भेद वाली मेरी अपरा प्रकृति है।
इस अपरा प्रक्रति से अलग मेरी परा प्रकृति को जान ले जिसके द्वारा यह जगत
धारण किया जाता है।
आठ प्रकार की प्रकृति समूचे ब्रह्मांड का
निर्माण करती है। यह
वेदों में वर्णित है ।मनुष्य का शरीर पंचमहाभूत अग्नि ,वायु ,जल,
पृथ्वी और आकाश से मिलकर बना है। यह विज्ञान की कसौटी पर भी खरा है। मानव का शरीर प्राकृतिक प्रकृति के
द्वारा ही बना है।
प्रकृति के बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं
की जा सकती है ।मनुष्य
का मन ,बुद्धि और अहंकार ए तीनों प्रकृति को संतुलित करते हैं या संरक्षित करते
हैं। प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत ही
गहरा नाता है।
मनुष्य के लिए धरती उसके घर के आंगन की तरह है। और आसमान छत के समान है। सूर्य ,चंद्रमा तारागण यह दीपक की तरह है।
समुद्र और नदियां पानी के मटके की तरह है। और सभी प्रकार की वनस्पतियां पेड़,
पौधे यह सब मानव के आहार के साधन हैं ।मनुष्य के लिए प्रकृति से अच्छा कोई गुरु भी
नहीं है ।आज
तक मनुष्य ने जो भी खोजें की है वह प्रकृति के द्वारा ही संभव हुई है।
गुरुत्वाकर्षण की खोज करने वाले महान वैज्ञानिक
न्यूटन ने भी प्रकृति के गुण के द्वारा ही गुरुत्वाकर्षण की खोज की।
प्रकृति की छांव में बैठकर पता नहीं कितने
कवियों ने प्रकृति के सौंदर्य के वर्णन में अनेकों अनेक कविताएं लिखी और प्रकृति
से शिक्षा लेकर मनुष्य ने अपने जीवन में सकारात्मक कार्य भी किए ।प्रकृति हमें शिक्षा देती है।
जैसे किसी पेड़ के अधिक पत्ते झड़ जाए पतझड़ आ
जाए तो पतझड़ उस पेड़ का अंत नहीं है।
इस तरीके के विचारों को जिन लोगों ने भी अपने
जीवन में आत्मसात कर लिया वह हमेशा सफल हुए हैं। उन्होंने सफलता पाने के लिए अपने
प्रयासों को बंद नहीं किया। बराबर प्रयास करते रहे, और सफलता हाथ लगी।
प्रकृति वृक्ष भी हमें यह शिक्षा दे रहे हैं ,कि
जब वृक्ष ,फूल और फल से लद जाते हैं तो वे झुक जाते हैं। इसी तरह मानवीय जीवन में भी व्यक्ति को
आत्मसात कर लेना चाहिए की उच्चता को प्राप्त करने के बाद भी उसका आत्मिक संतुलन
बना रहे।
मीठी वाणी का प्रयोग करता रहे ।किसी के साथ कटु वचन का प्रयोग ना करें दूसरों
के प्रति व्यवहार का नजरिया सकारात्मक हो।
हमारे पुराणों में बताया गया है। एक वृक्ष की तुलना सौ पुत्रों के
बराबर की गई है।
इसी कारण से भारतीय संस्कृति में वृक्षों को पूजने की परंपरा आदिकाल से रही है।
तुलसी की पूजा की जाती है क्योंकि उसमें औषधीय
गुण विद्यमान होते हैं। और भरपूर मात्रा में उससे हमको ऑक्सीजन मिलती
है ,जिससे हम जीवन मैं उपयोग करके जीवन जीते हैं।
पुराणों में तो यहां तक कहा गया है की जो
मनुष्य वृक्ष लगाता है वह वृक्ष जितने
दिनों तक फल- फूल देता है। उतने दिन तक वह स्वर्ग लोक में निवास करता है।
प्रकृति के द्वारा सबसे बड़ी शिक्षा हमें जीवन
में यह मिलती है कि नदी अपना जल स्वयं न पी करके दूसरों की प्यास बुझाती है। वृक्ष अपना फल स्वयं न खा करके दूसरों
का भरण पोषण करते हैं। सूर्य अपना प्रकाश समस्त संसार में प्रकाशित
करता है ।प्रकृति
के द्वारा कोई भी भेद नहीं किया जाता है।
और जब मनुष्य प्रक्रति से अनावश्यक रूप से
खिलवाड़ करता है, तब प्रकृति कुपित हो जाती है। जिसके परिणाम स्वरूप भयंकर तूफान और
सैलाब मानव जीवन को झेलने पड़ते हैं।
मानव जीवन में जल का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। जंगलों पर भी मानव का जीवन निर्भर है। जमीन भी मानव जीवन के भरण पोषण का
कार्य करती है ।जब
तक इन चीजों के बीच मनुष्य का जीवन चलता है, तब तक मनुष्य एक सुखी जीवन व्यतीत
करता है।
इन्हीं जीवनदायिनी चीजों को हटा करके मानव
अनेका अनेक भवनों और अट्टालिकाओं का निर्माण कर रहा है जो मानव जीवन के लिए
हानिकारक है।
जीवो के द्वारा छोड़ी गई कार्बन डाइऑक्साइड को
पेड़ सोखते है, और जीवनदायिनी ऑक्सीजन को देते हैं ।मानव जीवन के लिए उपयोगी है। जिसके बिना मनुष्य का एक पल भी जीवित
रहना मुश्किल है।
वेदों में प्रकृति के अस्तित्व को बनाए रखने के
लिए कई सूक्तियां हैं ।पर्यावरण को शुद्ध रखने के लिए विशेष बल दिया
गया है। इसमें दो तरीके बताए गए हैं
एक
आंतरिक
दूसरा
बाह्य
मनुष्य के शरीर के अंदर सूक्ष्म तत्व मन और आत्मा आंतरिक पर्यावरण का हिस्सा है
विज्ञान में केवल वाह पर्यावरण को शुद्ध रखने
पर ध्यान को केंद्रित किया गया है। और वेदों में आंतरिक पर्यावरण मन और आत्मा की
शुद्धि भी महत्वपूर्ण बताई गई है।
वाहरी पर्यावरण में घटित होने वाली
घटनाएं हमारे आंतरिक मन में घटित होने वाले विचारों का ही फल है।
श्रीमद्भागवत गीता में मन को चंचल कहा गया है।
व्यक्ति का आंतरिक पर्यावरण जितना शुद्ध होगा
वाहय पर्यावरण पर उतना ही ज्यादा ध्यान देगा, वेद के अनुसार वाह्य पर्यावरण की
शुद्धि के लिए मन की शुद्धि को प्रथम सोपान माना गया है। और इन तत्वों में असंतुलन का परिणाम
ही प्राकृतिक आपदा है।
बाढ़, भूकंप, सुनामी समस्त प्राकृतिक आपदाएं इन
तत्वों के असंतुलन के कारण ही होती हैं।
ऋग्वेद में वनस्पतियों को वनदेवी की संज्ञा दी
गई है, और उनकी आराधना की विधि भी बताई गई है ।मन में यह भाव हो कि मैं बन देवी की
पूजा करता हूं। जो
मधुर सुगंध से परिपूर्ण है। और सभी वनस्पतियों की मां है, और बिना किसी
परिश्रम के भोजन का भंडार है। इसी संदर्भ में उद्दालक ऋषि अपने पुत्र सेतूकेतु
से आत्मा का वर्णन करते हुए कहते हैं। कि वृक्ष जीवात्मा से ओतप्रोत होते हैं और
मनुष्य की तरह सुख और दुख का अनुभव करते हैं।
गुरु ग्रंथ साहब में भी वर्णन मिलता है गुरु
पानी के रूप में, जल को पिता के रूप में ,और धरती को माता के समान दर्जा दिया गया
है।
आपदाएं किसी भी प्रकार की हो। मानव के द्वारा निर्मित की गई हो चाहे
वह प्राकृतिक हो, दोनों का प्रभाव मानवीय जीवन पर पड़ता है। आपदाएं मानवीय जीवन की असफलता का ही
परिणाम है।
करोना जैसी भयानक महामारी यह जैविक आपदा है।
संसार के लाखों लोगों ने इस जैविक आपदा के कारण
अपनी जान तक गंवा दिया। लगभग सभी देश इस महामारी का शिकार हुए।
इस बीमारी के फैलने में मनुष्य के संपर्क में
आने से एक दूसरे से मिलने पर संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। जिसके निदान हेतु लोगों को बाहर
निकलने से मना कर दिया गया। लोगों का आवागमन कम रहा और पर्यावरण की स्थिति
काफी हद तक सुधर गई।
आपदा किसी भी तरह की हो वह मानव जीवन पर अपना
प्रभाव डालती है।
जून 2020 को
निसर्ग नामक तूफान जिसकी रफ्तार 120
किलोमीटर प्रति घंटे से थी। महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्रों से टकराया
सैकड़ों वर्ष के बाद इस तरह की स्थिति महाराष्ट्र में आई ।इस तूफान ने रत्नागिरी जिले में तबाही
मचाई अरब सागर में उठा निसर्ग तूफान में सबसे ज्यादा कहर रत्नागिरी में ढाया।
वर्तमान वर्ष 2020 में जैविक आपदाएं और प्राकृतिक आपदाएं ए साबित करती हैं, कि मनुष्य
ने प्रकृति के साथ लंबे समय तक खिलवाड़ किया है। उसी का यह परिणाम है ।हमें वातावरण को सुव्यवस्थित करना होगा,
जिससे जीवन का अस्तित्व बना रहे और प्रकृति में मनुष्य फलता फूलता रहे।
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