अर्धमत्स्येंद्रासन महर्षि मत्स्येंद्रनाथ के नाम पर पड़ा है। इसको यदि 4 शब्दों में विभाजित किया जाए, तो अर्ध अर्थात आधा या हाफ, मत्स्य अर्थात मछली ,इंद्र अर्थात देवताओं के राजा इंद्र ,आसन अर्थात बैठने की मुद्रा।
मत्स्येंद्रासन
अपने आप में एक अद्भुत आसान है इस आसन को करने से रीढ़ की हड्डी पर खिंचाव होता है। साथ ही लिवर,
किडनी ,गर्दन ,हाथ और
पैर व पीठ के निचले हिस्सों का एक अच्छा
खासा व्यायाम हो जाता है।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन विधि, फायदे और सावधानी - ardh matsyendrasana steps benefits and precautions in hindi
अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने की विधि –steps of ardh matsyendrasana
1- इस आसन
को करने के लिए दंडासन में बैठ कर के अपने दाहिने पैर को मोड़ कर एड़ी को उठाते
हुए बाएं पैर की तरफ रक्खे ।
2- अब
अपने बाएं हांथ को ऊपर की तरफ मुड़ते हुए उठे हुए पैर को धक्का दें उस पर दबाव
बनाएं
3- अब
दाहिने हाथ को पीछे की तरफ टेक ले और कमर से ऊपर के शरीर को पीछे की तरफ मोड़ते
हुए जितना मोड़ सके उतना मोड़े और गर्दन को मोड़ते हुए पीछे की तरफ देखने का
प्रयास करें।
4- अब
आपको अपने ठीक पीछे देखना है और धीरे-धीरे सांस को लेते रहना है। जितनी देर तक इस
स्थिति में रोक सकें रुके।
5- इसी
तरह दूसरे पैर को बाएं पैर को मोड़कर उठाते हुए दाहिने पैर की तरफ लाना है। और
दाहिने हाथ को मोड़कर पैर के ऊपर दबाव बनाते हुए पीछे की तरफ मुड़ना है गर्दन को
मोड़ते हुए पीछे की तरफ देखने का प्रयास करना है।
6- जो
प्रक्रिया हमने पहले की थी एक पैर के साथ वही प्रक्रिया और दूसरे पैर के साथ करते
हुए यह आवृत्ति करनी है।
अर्धमत्स्येंद्रासन के लाभ फायदे-benefits
of ardh matsyendrasana
1- इस आसन
को करने से अग्नाशय की सक्रियता बढ़ती है जिससे शुगर या मधुमेह के रोगियों के लिए
यह लाभदायक आसान है।
2- इस आसन
को करते समय रीढ की हड्डी पर खिंचाव होता है जिससे रीढ की हड्डी का लचीलापन बढ़ता
है और उनसे जुड़ी हुई नस ,नाड़ियों के लिए भी यह आसन लाभदायक है।
3- अर्धमत्स्येंद्रासन
करने से शरीर में ऑक्सीजन लेवल मेंटेन होता है क्योंकि इस आसन को करते समय छाती
खुल जाती है जिससे फेफड़ों में ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ जाती है।
4- इस आसन
को करने से पाचन संबंधी समस्याओं में भी लाभ मिलता है। गैस, खट्टी
डकार, अपच जैसी समस्याएं दूर होती है।
5- गर्दन
में तनाव को कम करता है।
6- कूल्हे
और रीढ़ की हड्डियों में तनाव को कम करता है।
7- इस आसन
को करने से जोड़ों का भी तनाव कम होता है।
अर्धमत्स्येंद्रासन करते समय सावधानियां-precautions of ardh matsyendrasana
1- गर्भवती
महिलाओं को इस आसन को नहीं करना चाहिए।
2- गर्दन
में किसी भी प्रकार की समस्या होने पर इस आसन को न करें।
3- हृदय
रोग से परेशान व्यक्ति इस आसन का अभ्यास न करें।
4- रीढ़
की हड्डी में किसी भी प्रकार की दिक्कत होने पर भी इस आसन को नहीं करना चाहिए।
अर्धमत्स्येंद्रासन क्यों करें
इस आसन को करने
से गर्दन, कमर, पाचन संबंधित विकार में राहत मिलती है। प्रत्येक आसन स्वास्थ्य के
दृष्टिकोण से उत्तम है । अर्धमत्स्येंद्रासन गोरखनाथ के गुरु मत्स्येंद्रनाथ का
प्रिय आसन था।
उन्होंने इस आसन
को करके बहुत से सिद्धियों को प्राप्त किया था।स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह आसन
उपयोगी है इसलिए इस आसन को करना चाहिए व अपने नित्य आसन की क्रिया में इसको
सम्मिलित करके पूर्ण स्वस्थ रहा जा सकता है।
अर्धमत्स्येंद्रासन कब करें।
सुबह के समय इस
आसन को करना चाहिए सुबह के समय योगाभ्यास करने से बेहतर लाभ मिलते हैं। सुबह के
समय नित्य क्रिया से निवृत्ति के बाद इस आसन को करना चाहिए, क्योंकि सुबह-सुबह पेट
खाली होता है और खाली पेट में आसन करने से अधिक लाभ मिलता है।
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