महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है |महाशिवरात्रि की कथा-mahashivratri kyon manai jati hai ,mahashivratri pauranik katha
महाशिवरात्रि के विषय में भिन्न भिन्न मत
है ।कुछ विद्वानों का मानना है कि आज के ही दिन शिव जी और माता पार्वती विवाह के
बंधन में बंधे थे।जबकि अन्य कुछ विद्वान ऐसा मानते हैं कि आज के ही दिन शिव जी ने
कालकूट नाम का विष का पान किया था। जो सागर मंथन के समय समुद्र से निकला था।
एक शिकारी की कथा भी इस त्यौहार के साथ
जुड़ी हुई है कि कैसे उसके अनजाने में की गई पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उस
पर अपनी असीम कृपा दृष्टि की थी। यह कथा शिव पुराण में संकलित है।
कथा कुछ इस प्रकार है
प्राचीन काल में किसी जंगल में एक गुरुदृह
नाम का शिकारी रहता था। जो अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए जंगली जानवरों का
शिकार करता था। एक बार शिवरात्रि के दिन जब वह शिकार के लिए निकला,
पर संयोग से पूरे दिन खोजने के बाद भी उसे कोई शिकार ना मिला। (इसे पढ़ें -भगवान श्रीकृष्ण के 16 कला व 64 गुण कौन थे )
उसे चिंता होने लगी की उसके माता ,पिता और उसके
बच्चे और पत्नी आज भूखे ही रहेंगे।सूर्यास्त होने पर वह एक जलाशय के समीप गया और
वहां एक घाट के किनारे एक पेड़ पर थोड़ा सा जल पीने के लिए लेकर चढ़ा गया।
क्योंकि उसे पूरी उम्मीद थी कोई न कोई जानवर
अपनी प्यास बुझाने के लिए यहां जरूर आएगा। वह पेड़ बेलपत्र का था और उसी पेड़ के
नीचे शिवलिंग भी था जो सूखे बेल पत्रों से ढके होने के कारण दिखाई नहीं दे रहा था।
रात्रि का पहला प्रहर बीतने से पहले एक हिरणी वहां पर पानी पीने के लिए आई। उसे देखते ही शिकारी ने अपने धनुष पर बाण साधा। ऐसा करने में उसके हाथ के धक्के से कुछ बेल के पत्ते एवं जल की कुछ बूंदे नीचे बने शिवलिंग पर गिर गई और अनजाने में ही शिकारी की पहले पहर की पूजा हो गई। (इसे भी पढ़ें -हनुमानजी को हराने वाले एकमात्र योद्धा कौन थे )
हिरणी ने जब पत्तों की खडखडाहट सुनी तो घबराकर ऊपर की ओर देखा और भयभीत होकर
शिकारी से कांपते हुए स्वर में बोली मुझे मत मारो। शिकारी ने कहा कि वह और उसका
परिवार भूखा है, इसलिए वह उसे नहीं छोड़ सकता।
हिरनी ने वादा किया कि वह अपने बच्चों को अपने
स्वामी को सौंप कर लौट आएगी तब वह उसका शिकार कर ले। शिकारी को उस हिरणी की बात पर
विश्वास नहीं हो रहा था। उसने फिर से शिकारी को यह कहते हुए भरोसा दिलाया कि जिस
प्रकार से धरती सत्य पर टिकी हुई है। झरनों से निरंतर जलधारा गिरा करती है। समुद्र
हमेशा मर्यादा में रहता है। वैसे ही वह भी सत्य बोल रही है।
शिकारी स्वभाव से क्रूर था लेकिन फिर भी उसे उस
हिरणी पर दया आ गई और उसने उसको जाने दिया और कहा जल्दी लौट आना ।
थोड़ी ही देर बाद एक और हिरणी वहां पानी
पीने आई शिकारी सावधान हो गया तीर साधने लगा।उसके हाथ के धक्के से पहले ही की तरह
फिर जल की कुछ बूंदे और बेलपत्र नीचे बने शिवलिंग पर गिर गए और शिकारी की दुसरे
प्रहर की भी पूजा हो गई।
इस हिरनी ने भी भयभीत होकर शिकारी से
जीवनदान की याचना की, लेकिन उसके अस्वीकार कर
देने पर हिरनी ने उसे लौट आने का वचन दिया। उसने यह कहकर शिकारी को वचन दिया कि जो
वचन देकर उसका पालन नहीं करता है उसके जीवन में सभी संचित पुण्य नष्ट हो जाते हैं।
शिकारी में पहले की तरह इस हिरनी के बचन का भी भरोसा कर उसे जाने दिया। (इसे भी पढ़ें -शानिसेव को तेल क्यों प्रिय है )
अब वह इस चिंता से व्याकुल हो रहा था कि
उनमें से शायद ही कोई हिरनी लौट के आए और अब उसके परिवार का क्या होगा। इतने में
ही उसने जल की ओर आते हुए एक हिरण को देखा, उसे
देखकर शिकारी बड़ा प्रसन्न हुआ।
अब फिर धनुष पर बाण चढ़ाने से उसकी तीसरे
प्रहर की भी पूजा स्वता ही संपन्न हो गई।लेकिन पत्तों की खरखरआहट से वह हिरण
सावधान हो गया। उसने शिकारी को देखा और पूछा तुम क्या करना चाहते हो।
शिकारी बोला मैं तुम्हारा वध करना चाहता हूं ,क्योंकि मेरा परिवार भूखा है। वह हिरण प्रसन्न होकर कहने लगा मैं धन्य हूं,
कि मेरा यह शरीर किसी के काम आएगा। परोपकार से मेरा जीवन सफल हो जाएगा।पर कृपया कर
अभी मुझे जाने दो ताकि मैं अपने बच्चों को उनकी माता के हाथ में सौंप कर और उन सब
को धीरज बांधकर यहां लौट आऊंगा।
शिकारी का ह्रदय अब शुद्ध हो चुका था
क्योंकि भगवान की पूजा से उसके पाप नष्ट
हो चुके थे।इसलिए शिकारी विनय पूर्वक बोला कि जो -जो अभी तक यहां आए हैं, सब बातें
बना कर चले गए और अभी तक नहीं लौटे यदि तुम भी झूठ बोल कर चले जाओगे तो मेरे
परिवार का क्या होगा।
अब हिरण ने उसे यह कहते हुए अपनी बात का
भरोसा दिलाया कि यदि वह लौट कर ना आए तो उसे वह पाप लगे जो उसे लगा करता है।जो
सामर्थ्य रहते हुए भी दूसरों का उपकार नहीं करता ।शिकारी ने उसे भी यह कहकर जाने
दिया जल्दी लौट आना।
रात्रि का अंतिम प्रहर शुरू होते ही उस
शिकारी के हर्ष की सीमा न थी। क्योंकि उसने उन सब हिरण हिरनियों को अपने बच्चों सहित एक साथ आते देख लिया था।उन्हें
देखते ही उसने अपने धनुष पर बाण रखा और पहले की ही तरह उसकी चौथे प्रहर की भी शिव
पूजा संपन्न हो गई।
अब उस शिकारी के शिव कृपा से सभी पाप नष्ट हो
चुके थे। इसलिए वह सोचने लगा। यह पशु धन्य है जो ज्ञानहीन होकर भी अपने शरीर से
परोपकार करना चाहते हैं। लेकिन धिक्कार है मेरे जीवन को ,कि मैं अनेक प्रकार के
कुक्रत्यों से अपने परिवार का पालन करता रहा।
अब उसने अपना बाण रोक लिया तथा मृगों से
कहा कि वह सब धन्य है ।तथा उन्हें वापस जाने दिया।उसके ऐसा करने पर भगवान शंकर ने
प्रसन्न होकर तत्काल उसे अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन करवाया तथा उसे सुख समृद्धि
का वरदान देकर गुह नाम प्रदान किया।
यह वही गुह्य था जिसके साथ भगवान श्रीराम
ने मित्रता की थी।
शिवजी जटाओं में गंगा जी को धारण करने
वाले। सिर पर चंद्रमा को सजाने वाले। मस्तक पर त्रिपुंड तथा तीसरे नेत्र वाले। कंठ
में काल पास तथा रुद्राक्ष माला से सुशोभित ,हाथ में डमरू और त्रिशूल है।
जिनके भक्तगण बड़ी श्रद्धा से जिन्हें शिव शंकर
शंकर, भोलेनाथ ,महादेव, भगवान आशुतोष ,उमापति, गौरीशंकर, सोमेश्वर ,महाकाल ,ओमकारेश्वर
,बैद्यनाथ, नीलकंठ, त्रिपुरारी, सदाशिव तथा अन्य सहस्त्रों नामों से संबोधित कर
उनकी पूजा अर्चना किया करते हैं।
ऐसे भगवान शिव एवं शिवा हम सब के चिंतन को
सदैव सकारात्मक बनाएं एवं सबकी मनोकामनाएं पूरी करें।
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