योगासन और उसके नियम कौन-कौन से हैं
पद्मासन, भद्रासन, सिद्धासन, सुखासन आदि किसी भी आसन में स्थिरता
पूर्वक बैठना योगासन कहलाता है।
साधक को जब उपासना व ध्यान आदि करने के लिए
किसी भी आसन में स्थिरता और सुख पूर्वक बैठने का लंबा अभ्यास भी करना चाहिए। जो इन आसनों में नहीं बैठ सकते या
रोगी हैं उनके लिए महर्षि व्यास कहते हैं कि वह शोपाश्रय आसन अर्थात कुर्सी अथवा
दीवार आदि का भी सहारा लेकर प्राणायाम ध्यान आदि का अभ्यास कर सकते हैं।
जप और ध्यान के लिए आसन का अभ्यास आवश्यक है। किसी भी ध्यानात्मक आसन के करते समय
मेरुदंड हमेशा सीधा होना चाहिए। भूमि समतल होनी चाहिए, बिछाने के लिए गद्देदार
वस्त्र या कंबल आदि ऐसा आसन होना चाहिए जो विद्युत का कुचालक तथा आरामदायक हो। उपासना के लिए एकांत स्थान शुद्ध वायु
का होना आवश्यक है।
आज के समाज में कुछ ऐसी विचारधारा फैलती जा रही
है कि कुछ लोग मात्र योग के कुछ आसनों को करके अपने आप को योगी कहने लगते हैं। और कुछ लोग उनको योगी भी समझने लगते
हैं। योगासन तो योग का एक अंग मात्र है,
योगी होने के लिए तो अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य रूप, यम, नियमों सहित
अष्टांग योग का पूर्ण पालन करते हुए दीर्घकाल तक श्रद्धा पूर्वक समाधि का अभ्यास
करना पड़ता है।
हठयोग में 84
प्रकार के आसन बताए गए हैं। ध्यानात्मक आसनों के अतिरिक्त हठयोग में दूसरे
ऐसे आसन वर्णित हैं। जिनका संबंध शारीरिक व मानसिक आरोग्य से है इन
आसनों को करने से शरीर के प्रत्येक अंग -प्रत्यंग को पूरी क्रियाशीलता मिलती है ,एवं
वह सक्रिय स्वस्थ और लचीले बन जाते हैं।
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प्रकार और इसका जीवन पर प्रभाव
योगासन के नियम
योगासन के लिए कुछ नियम है जिनको ध्यान में रखकर
योगाभ्यास किया जाता है तो इसमें बहुत ही शीघ्र सफलता प्राप्त होती है।
1- समय
आसन प्रातः सायं दोनों समय कर सकते हैं। यदि दोनों समय नहीं कर सकते तो प्रातः
काल का समय अति उत्तम है। प्रातः काल मन शांत रहता है। शौच आदि से निवृत्त होकर खाली पेट तथा
दोपहर के भोजन के लगभग 5 घंटे बाद सायंकाल आसन कर सकते हैं ।आसन करने से पहले सौच आदि से निवृत
होना चाहिए।
यदि कब्ज रहता है, तो प्रातः काल तांबे और चांदी के बर्तन में रखे हुए पानी को
पीना चाहिए।
उसके पश्चात थोड़ा सा टहलने से पेट साफ हो जाता है। अधिक कब्ज हो तो त्रिफला का चूर्ण
गर्म पानी के साथ रात्रि में सोते समय ले।
2- स्थान
स्वच्छ शांत एवं एकांत स्थान आसन के लिए उत्तम
है ।यदि वृक्षों के हरियाली के समीप बाग,
तालाब या नदी का किनारा हो तो और भी उत्तम है। खुले वातावरण एवं वृक्षों के नजदीक
ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा मिलती है। जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है। यदि घर में आसन- प्राणायाम करें तो घी
का दीपक या गूगल आदि जलाकर उस स्थान को सुगंधित करना चाहिए।
3- वेशभूषा
आसन करते समय शरीर पर वस्त्र कम व सुविधाजनक
होने चाहिए ।पुरुष
हाफ पैंट और बनियान का उपयोग कर सकते हैं। माताएं सलवार ब्लाउज आदि पहनकर योगासन
एवं प्राणायाम आदि का अभ्यास कर शकती है।
4- आसन व मात्रा
भूमि पर बिछाने के लिए मुलायम दरी या कंबल का
प्रयोग करना उचित होता है। खुली जमीन पर आसन न करें। अपने सामर्थ्य के
अनुसार व्यायाम करना चाहिए। आसनों का पूर्ण अभ्यास 1 घंटे में ,मध्यम अभ्यास आधा घंटे में,
तथा संक्षिप्त अभ्यास 15 मिनट में होता है। आधा घंटा तो प्रत्येक व्यक्ति को
योगासन करना ही चाहिए।
5- आयु
मन एकाग्र कर प्रसन्नता एवं उत्साह के साथ अपनी
शारीरिक शक्ति और क्षमता का पूरा ध्यान
रखते हुए यथाशक्ति अभ्यास करना चाहिए। तभी वह योग से वास्तविक लाभ उठा सकेगा। वृद्ध एवं दुर्बल व्यक्तियों को आसन
एवं प्राणायाम अल्प मात्रा में करना चाहिए। 10
वर्ष से अधिक आयु के बालक सभी योगिक अभ्यास कर सकते हैं। गर्भवती महिलाएं कठिन आसन आदि न करें। वह केवल धीरे-धीरे दीर्घ स्वसन प्रणव
नाद एवं पवित्र मंत्रों का ध्यान करें।
6- अवस्था एवं सावधानियां
सभी अवस्थाओं में आसन व प्राणायाम किये जा सकते
हैं। इन क्रियाओं से स्वस्थ व्यक्ति का
स्वास्थ्य उत्तम बनता है। वह रोगी नहीं होता, और रोगी व्यक्ति स्वस्थ
होता है।
परंतु फिर भी कुछ ऐसे आसन हैं। जिनको रोगी व्यक्ति को नहीं करना चाहिए। तथा जिनका कान बहता हो, नेत्रों में लाली हो, स्नायु एवं
हृदय दुर्बल हो, उनको शीर्षासन नहीं करना चाहिए।
ह्रदय दुर्बल वाले को अधिक भारी आसन जैसे पूर्ण
शलभासन, धनुरासन आदि नहीं करना चाहिए। अंड वृद्धि वालों को भी यह आसन नहीं
करनी चाहिए।
जिनसे नाभि के नीचे वाले हिस्से पर अधिक दबाव पड़े। उच्च रक्तचाप वाले रोगियों को सिर के
बल किए जाने वाले शीर्षासन आदि तथा महिलाओं को रितु काल में चार-पांच दिन आसनों का
अभ्यास नहीं करना चाहिए। जिनको कमर और गर्दन में दर्द रहता हो वह आगे
झुकने वाले आसन न करें।
7- भोजन
भोजन योगासन के लगभग आधे घंटे पश्चात करना
चाहिए। भोजन में सात्विक पदार्थों तले हुए
गरिष्ठ पदार्थों का सेवन से जठर विकृत हो जाता है। आसन के बाद चाय नहीं पीनी चाहिए ।एक बार चाय पीने से यकृत आदि कोमल
ग्रंथियों को लगभग 50 सेल्स निष्क्रिय हो जाते हैं।
इससे आप स्वयं अनुमान कर सकते हैं, कि चाय में
कितनी हानि है ।यह
भी स्वास्थ्य की एक भयंकर शत्रु है। जो शरीर रूपी पावन मंदिर को विकृत कर देती है। इसमें एक प्रकार का नशा भी होता है। जिसका व्यक्ति अभ्यस्त हो जाता है। जठराग्नि को मंद करने एवं अम्ल पित्त ,गैस,
कब्ज आदि रोगों को उत्पन्न करने में चाय का सबसे अधिक योगदान होता है। यकृत को विकृत करने में भी चाय और अंग्रेजी दवा दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
8- श्वास- प्रश्वास का नियम
योगासन करते समय सामान्य नियम है। कि आगे की ओर झुकते समय श्वास बाहर
निकालते हैं, तथा पीछे की ओर झुकते समय श्वास अंदर भरकर रखते हैं। स्वास नासिका से ही लेना वा छोड़ना
चाहिए। मुख से नहीं, क्योंकि नाक से लिया हुआ
स्वास फिल्टर होकर अंदर जाता है।
9- द्रष्टि
आंखें बंद करके योगासन करने से मन की एकाग्रता
बढ़ती है।
जिससे मानसिक तनाव एवं चंचलता दूर होती है। सामान्यता आसन एवं प्राणायाम आंखें
खोल कर भी कर सकते हैं।
10- क्रम
कुछ योगासन एवं पार्श्व करने होते हैं, यदि कोई आसन दाईं करवट करें ,तो
उसे बाई करवट भी करें। इसके अतिरिक्त आसनों का एक ऐसा क्रम निश्चित
कर लें, कि प्रत्येक अनुवर्ती आसन से विघटित दिशा में भी पेशियों और संधियों का
व्यायाम हो जाए।
उदाहरण तया सर्वांगासन के उपरांत मत्स्यासन ,मंडूकासन के बाद उष्ट्रासन किया जाए। नवाभ्यासी में शुरू में दो-चार दिन मांसपेशियों और संधियों
में पीड़ा का अनुभव करेंगे। अभ्यास जारी रखें पीड़ा शांत हो जाएगी।लेटी अवस्था में किये गए आसनों के बाद
जब भी उठा जाय, बाई करवट की ओर झुकते हुए उठना चाहिए।अभ्यास के अंत में शवासन 8 से 10 मिनट
अवश्य करें ताकि अंग प्रत्यंग शिथिल हो जाए।
11- विश्राम
आसन करते समय जब जब थकान का अनुभव हो तब शवासन
या मकरासन में विश्राम करना चाहिए। थक जाने के बीच में भी विश्राम कर सकते हैं।
12- यम नियम
योगाभ्यास करने वाले लोगों को यम, नियम का पालन
पूरी तरह से करना चाहिए। बिना एवं नियमों के पालन के कोई भी व्यक्ति
योगी नहीं हो सकता है।
13- शरीर का तापमान
शरीर का तापमान अधिक उष्ण होने पर या ज्वर होने
की स्थिति में योगाभ्यास करने से तापमान बढ़ जाए तो चंद्र स्वर यानी बाई नासिका से
श्वास अंदर खींचकर को रखकर सूर्य स्वर यानी दाईं नासिका से रेचक श्वास बाहर
निकालना करने की विधि बार- बार करके तापमान सामान्य कर लेना चाहिए।
14- पेट की सफाई
पेट की सफाई और उचित आहार-विहार करना बहुत ही
आवश्यक है।
15- कठिन आसन
जिन व्यक्तियों को कभी अस्थि भंग हुआ है। जैसे जिनकी हड्डियां कभी टूटी हुई है ।वह कठिन आसनों का अभ्यास न करें। अन्यथा उसी स्थान पर दोबारा हड्डी टूट
सकती है।
16- पसीना आने पर
योगा आसन के अभ्यास के दौरान पसीना आ जाए तो
किसी कपड़े से पोछ लेना चाहिए। इससे चुस्ती फुर्ती आ जाती है ।चर्म स्वस्थ रहता है रोगाणु चर्म मार्ग से शरीर में प्रवेश नहीं कर सकेंगे। योग आसन का अभ्यास यथासंभव स्नान आदि
से निवृत होकर करना चाहिए। अभ्यास के 15:20 मिनट बाद भी शरीर का तापमान सामान्य होने पर स्नान कर सकते हैं।
योगासन के प्रकार
खड़े होकर करने वाले आसन
1- ताड़ासन
2- हस्तोसत्ताकनासन
3- कटिचक्रासन
4- अर्ध चक्रासन
5- त्रिकोणासन
6- पाश्र्वकोणासन
7- वृक्षासन
8- गरुड़ासन
बैठकर करने वाले योगासन
9- पद्मासन
10- सिद्धासन
11- वज्रासन
12- भद्रासन
13- सिंहासन
14- गोमुखासन
15- वक्रासन
16- अर्धमत्स्येंद्रासन
17- गोरक्षासन
18- गर्भासन
19- पश्चिमोत्तानासन
20- कूर्मासन
21- उत्तान मंडूकासन
22- उष्ट्रासन
23- शशकासन
24- मंडूकासन
पेट के बल लेटकर करने वाले आसन
25- मकरासन
26- भुजंगासन
27- शलभासन
28- धनुरासन
पीठ के बल लेटकर करने वाले आसन
29- उत्तानपादासन
30- सेतुबंध
31- सर्वांगासन
32- अर्ध हलासन
33- हलासन
34- पवनमुक्तासन
35- शवासन
आधुनिक आसन
36- विपरीतकरणी
37- सर्वांगासन
38- शीर्षासन
39- नौकासन
40- कुक्कुटासन
41- वक्रासन
42- मयूरासन
43- नटराजआस
उपरोक्त योगासन को दैनिक जीवन में अपनाकर समस्त
प्रकार के शारीरिक ,मानसिक विकारो से मुक्त होकर जीवन में आनन्द ,सुख ,शान्ति
प्राप्त कर सकते है ।
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