अष्टांग योग क्या है और इसकी क्या उपयोगिता है-ashtang yog kya hai aur iski kya upyogita hai

 


अष्टांग योग क्या है और इसकी क्या उपयोगिता है

अष्टांग योग को राजयोग भी कहा गया है हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा इसकी व्याख्या की गई है अष्टांग योग में आठ अंग बताए गए हैं इसीलिए इसका नाम अष्टांग योग कहा गया है


अष्टांग योग के आठ अंग है

पहला है यम

दूसरा है नियम

तीसरा है आसन

चौथा है प्राणायाम

पांचवा है प्रत्याहार

छठा है धारणा

सातवां है ध्यान

आठवां है समाधि

अष्टांग योग क्या है और इसकी क्या उपयोगिता है-ashtang yog kya hai aur iski kya upyogita hai




 इस प्रकार इसके 8 अंग हैं इसीलिए इसको अष्टांग योग का गया है

यम

अष्टांग योग में इसको योग का प्रथम अंग माना गया है यम के अनुष्ठान से इंद्रियों और मन को हिंसा जैसे अशुभ विचारों से हटाकर, आत्म केंद्रित किया जाता है इसे यम कहते हैं

अष्टांग योग में इसको  महर्षि पतंजलि द्वारा पांच भागों में बांटा गया है

पहला अहिंसा

दूसरा है सत्य

तीसरा है अस्तेय

चौथा ब्रम्हचर्य

पांचवा अपरिग्रह

अष्टांग योग में नियम

यह अष्टांग का योग दूसरा अंग है

अष्टांग योग में नियमों को पांच भागों में बांटा गया है

पहला है सौच

दूसरा है संतोष

तीसरा है तप

चौथा है स्वाध्याय

पांचवा है ईश्वर प्राणिधान

आसन

 और पढ़ें - योग में यम,नियम की सम्पूर्ण व्याख्या 

आसन को अष्टांग योग का तीसरा अंग माना गया है

भद्रासन, सिद्धासन या सुखासन पद्मासन किसी भी आसन में स्थिरता पूर्वक बैठना ही आसन कहलाता है

अष्टांग योग का चौथा अंग प्राणायाम

स्वास प्रश्वास की गति को नियंत्रित करना प्राणायाम कहलाता है प्राणायाम चार प्रकार के होते हैं

पहला है वाहयव्रत्ती

दूसरा अभ्यांतर वृत्ति

तीसरा स्तंभ वृत्ति

चौथा वाह्यभ्यंतर

अष्टांग योग का पांचवा अंग है प्रत्याहार

इंद्रियों को अपने विषय रूप ,रस आदि का सन्निकर्श ना होने पर, चित्र वृत्त के अनुरूप ही इंद्रियां हो जाती हैं जब साधक विवेक और वैराग्य से अपने मन पर पूर्ण नियंत्रण कर लेता है और अपने इंद्रियों को जीत लेता है क्योंकि मन के द्वारा ही इंद्रियां चलती हैं यह इंद्रियों पर विजय जिसको मनोजय कहते हैं अर्थात विषयों से विमुख होकर मन तथा इंद्रियों को अंतर्मुखी करना ही प्रत्याहार कहलाता है

अष्टांग योग का छठा अंग धारणा

शरीर के किसी भी एक अंग पर ध्यान को केंद्रित करना, मन को एकाग्र करना ही धारणा कहलाता है

अष्टांग योग का सातवां अंग है ध्यान

धारणा के द्वारा मन को एकाग्र करने के बाद ध्यान आता है ध्यान में व्यक्ति परम सत्ता से एकाकार हो जाता है इसी को ध्यान कहते हैं

अष्टांग योग का आठवां अंग समाधि

जब साधक ध्यान करते –करते इतनी गहराई में उतर जाता है और स्वयं को भूलकर ईश्वर से एकाकार हो जाता है और परम आनन्द की अनुभूति होने लगती है इसी अवस्था का नाम समाधि है

अष्टांग योग की आधुनिक जीवन में उपयोगिता

इस संसार का प्रत्येक व्यक्ति सुख और शांति चाहता है संसार का जो भी व्यक्ति है कुछ भी वह कार्य कर रहा है उसका एक ही उद्देश्य है ,कि उसे सुख मिलेगा संपूर्ण विश्व में शांति स्थापित होने का एकमात्र विकल्प है अष्टांग योग

मानव मात्र के कल्याण के लिए, उसके शारीरिक और मानसिक संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए अष्टांग योग वरदान है यह एक ऐसा रास्ता है, जिस पर चलकर व्यक्ति अपने जीवन को संपूर्ण सुखमय बना सकता है

आज के समय में व्यक्ति कई तरह की शारीरिक मानसिक समस्यायों से परेशान है ,तनाव ,चिंता, डिप्रेशन जैसी समस्याए बढ़ रही है ऐसे में योग ही इन समस्यायों से बचने का रास्ता है 

महर्षि पतंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग का पथ यह कोई संप्रदाय नहीं है यह जीवन को जीने की एक पद्धति है यदि संसार के लोग इस बात को लेकर गंभीर हैं कि प्रत्येक स्थान पर शांति होनी चाहिए, तो अष्टांग योग इसका समाधान है अष्टांग योग के द्वारा सामाजिक, मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक व आत्मिक, आनंद की अनुभूति हो सकती है

यम, नियम ,आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि अष्टांग योग के आठ अंगों का पालन किए बिना कोई व्यक्ति योगी नहीं हो सकता अष्टांग योग योगियों के लिए ही नहीं है संसार के संपूर्ण व्यक्ति के लिए व मानव जाति के लिए संपूर्ण सुख प्रदान करने वाला है और सभी के लिए अष्टांग योग का पालन करना अनिवार्य है अष्टांग योग धर्म, अध्यात्म, मानवता एवं विज्ञान के प्रत्येक कसौटी पर खरा है इस संसार के समस्त विवादों को यदि किसी उपाय से रोका जा सकता है सुख और शांति लाई जा सकती है तो वह अष्टांग योग के ही द्वारा संभव है अष्टांग योग के द्वारा जीवन के सामान्य व्यवहार से लेकर के ध्यान और समाधि अथवा अध्यात्म की अनंत ऊंचाइयों का अनूठा संगम है जो भी व्यक्ति अपने जीवन के पूर्ण सत्य से परिचित होना चाहता है उसे अष्टांग योग का पालन करना चाहिए

अष्टांग योग के द्वारा मन पूर्ण शांत हो जाता है व्यक्ति को विवेक और ज्ञान हो जाता है उचित ,अनुचित का भान हो जाता है उसके द्वारा समाज में कोई ऐसा कृत्य नहीं किया जाता है ,जो किसी व्यक्ति व समाज के लिए अप्रिय हो

मानसिक स्वास्थ्य उत्तम बनाने का अष्टांग योग सुगम रास्ता है संपूर्ण शारीरिक स्वास्थ्य भी अष्टांग योग के द्वारा प्राप्त किया जाता है

मोटापा, गैस, कब्ज, अम्ल, पित्त ,आदि संपूर्ण उदर रोग, कमर दर्द, वात रोग श्वास रोग, माइग्रेन ,डिप्रेशन ,उच्च रक्तचाप ,तनाव ,हृदय रोग से मुक्त होकर व्यक्ति संपूर्ण शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त कर लेता है

अतः हम कह सकते हैं अष्टांग योग के द्वारा हम शारीरिक मानसिक संपूर्ण स्वास्थ्य प्रदान कर सकते हैं और यह हमारे जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी है

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