अहंकार रहित होकर सदाचार करना ही सच्चा अध्यात्म है


अहंकार रहित होकर सदाचार करना ही सच्चा अध्यात्म है



                              अहंकार रहित होकर सदाचार करना ही सच्चा अध्यात्म है-ahankar rahit hokar sadachar karna hi saccha adhyatm hai

अहंकार व्यक्ति को कभी सही रास्ता नहीं दिखता है अहंकार के वशीभूत व्यक्ति हमेशा दुसरे के साथ बुरा व्यवहार करता है उसे सही गलत का अंदाजा नहीं होता उसकी केवल एक ही मानसिकता बन जाती है की मेरे द्वारा किया गया कार्य सही है अन्य सभी लोग गलत है वह अपने परिवार के प्रति भी सही व्यवहार नहीं करता 

ऐसे व्यक्ति का विश्वास किसी दूसरे  लोगो पर नहीं होता  वह हमेशा दूसरों को दुःख ही देता है अहंकारी व्यक्ति के परिवार में कभी कोई प्रसन्न नहीं रह सकता क्योंकि इस तरीके के लोगों की जुबान से केवल विष ही निकलता है जो सुनने वाले के लिए हानिकारक है जिससे परिवार में हमेशा तनाव व बिमारी बनी रहती है 

अहंकारी व्यक्ति हमेशा दूसरों की अच्छाई को नजरअंदाज  करता है केवल उसकी बुराई पर ही नजर बनाये रखता है उसके साथ आप कितना ही अच्छा व्यव्हार करे वह आपको कभी सम्मान नहीं देगा उसके साथ जीवन जीने वाले लोगो की जिन्दगी नर्क के समान हो जाती है यहाँ तक वह अपने जीवन को भी नर्क बना लेता है मन ही मन घुटता रहता है किसी के साथ प्रेमपूर्वक व्यव्हार नहीं करता है

इस तरह के लोग यदि अध्यात्मिक जीवन भी अपनाते है तब भी उनका सुधार नहीं होता क्योंकि अध्यात्म हमें कभी दूसरों को कस्ट देने की शिक्षा नहीं देता जहाँ जगह नहीं है केवल अहंकार भरा हुआ है उसमे ईश्वर की शक्ति कैसे समाहित ही सकती है

ईश्वरीय शक्ति तो अहंकार रहित आत्मा में ही समाहित हो सकती है मन जब ईर्ष्या द्वेष से भरा है तो वहां प्रेम सदाचार सुख कहाँ से आएगा? दूसरों को दुख देने वाला सुख कहाँ करेगा? जब मन में किसी जगह अहंकार  की गांठ है वह पूरी तरह से नस्ट नहीं हुई है तो प्रेम सदाचार कहाँ से आयेगा?

सच्चा अध्यात्म तो अहंकार के त्याग से ही संभव है 

मन को एक छोटे बालक की भांति निर्मल बनाकर ही ईश्वर  की कृपा प्राप्त की जा सकती है जब छोटे से बालक को कोई खिलौना मिल जाता है वह अपना सारा दुख भूल जाता है प्रसन्न हो जाता है क्योंकि उसके मन में अहंकार नहीं है ईर्ष्या नहीं है और हम दिन रात भजन करते हैं पूजा आराधना करते हैं 

फिर भी  हम अपने आप में परिवर्तन नहीं करते है हम बच्चों की तरह निर्मल नहीं बनते अहंकार का त्याग नहीं करते  तो हमारे पूजा पाठ भजन में कुछ कमी है क्योंकि जिसके द्वारा हम शान्ति चाहते है सुख चाहते है और हमें अशांती मिल रही है दुख मिल रहा है तो हमें अपने मन को एक अबोध बालक की भाँती निर्मल बनाने की जरूरत है

अहंकार रहित होकर सदाचारी बनकर दूसरों के प्रति दयावान बनकर दूसरों की गलतियों का माफ़ करकर आदर सम्मान करके ही अध्यात्मिक जीवन में सफलता मिल सकती है हमारे द्वारा दिया गया प्रेम सदाचार ही सच्चा अध्यात्म है  कलुषित भावनाएं त्याग कर ही अध्यात्म के मार्ग पर चला जा सकता है अहंकार रहित जीवन हमेशा सुख देता है आनन्द देता है

                    निर्मल मन जस मोहि पावा  मोहि कपट छल छिद्र न भावा 

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