संस्कार से बनता है बच्चो का भविष्य-sanskar se banta hai bacchon ka bhavishy

 संस्कार से बनता है बच्चो का भविष्य-sanskar se banta hai bacchon ka bhavishy

अच्छे संस्कार अच्छे भविष्य को बनाते हैं। बच्चों को संस्कारी बनाना परिवार के हाथ में है। घर के लोगों माता, पिता, भाई ,बहन इन सब के हाथ में है, कि बच्चे संस्कारी कैसे बने ?अच्छे संस्कार उनको कैसे दिए जाएं? क्योंकि अच्छे संस्कार ही सुंदर भविष्य का निर्माण करते हैं।सत्संग से अच्छे विचार और अच्छे संस्कार मिलते है ।


 छोटे बालकों का मन एक कोरे कागज की तरह होता है जिस पर जो भी उनके परिवार का प्रभाव पड़ता है वही उस कागज पर लिख जाता है। परिवार के लोगों को छोटे बच्चों को बचपन से ही संस्कारी बनाएं ईश्वर के महत्व को समझाएं और ईश्वर के बिना जीवन में कोई भी कार्य संभव नहीं हो सकता है जीवन के समस्त सुख और दुख ईश्वर की कृपा के द्वारा ही आते हैं और जाते हैं। यदि ईश्वर की कृपा प्राप्त हो जाए तो जीवन कैसे सुंदर बनता है।इसको हम आपको एक कहानी के माध्यम से बताना चाहते हैं।

संस्कार से बनता है बच्चो का भविष्य-sanskar se banta hai bacchon ka bhavishy


एक लड़की थी जिसका नाम था लक्ष्मी उसके पिता का बचपन में ही देहांत हो गया था।घर में मां और बेटी दोनों के सिवाय और कोई नहीं था। माँ जब भी घर का काम करती थी तो लक्ष्मी उसके कामों में उसका हाथ बटाती थी। लक्ष्मी की मां पूजा पाठ में अधिक विश्वास रखती थी और धर्मात्मा थी।

वह पूजन अर्चन करने के लिए पास में बने शिव मंदिर को जाया करती थी। भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए उनका पूजा पाठ करने के लिए। लक्ष्मी भी अपनी मां के साथ मंदिर को जाया करती थी धीरे धीरे लक्ष्मी को भगवान शिव से अधिक लगाव हो गया।(और पढ़ें-भक्तों पर भगवान की कृपा )

 जिस दिन उसकी मां मंदिर को नहीं जाती थी या जाने में विलंब करती थी। उस दिन वह अपनी मां से पूछती थी कि मां अभी इतना समय क्यों लगा रही हो चलो मंदिर घूम कर आए इतनी श्रद्धा हो गई थी उसके मन में भगवान शिव के प्रति । 1 दिन लक्ष्मी अपनी मां से पूछती है कि भगवान शिव तो सबके साथ समान रूप से व्यवहार करते हैं, वह किसी के साथ भेदभाव नहीं करते हैं वह तो भोलेनाथ हैं।

तो फिर मुझे इतना गरीब क्यों बनाया जबकि दूसरे लोगों को अमीर बना दिया।मां लक्ष्मी से कहती है कि बेटी यह तो भगवान के हाथ में है वह जिसको जैसा चाहे वैसा बना दे। किसी को अमीर बना देता है, तो किसी को गरीब बना देता है यह सब भगवान की माया है।

 फिर लक्ष्मी अपने मां से पूछती है तो भगवान जी कहां मिलते हैं ,क्या मैं उनसे मिल सकती हूं। मां जानती थी कि भगवान तो सब जगह मिलते हैं यह बात तो केवल मां जानती थी कि भगवान कण-कण में है लेकिन उस बच्ची को क्या बताएं।तो मां ने लक्ष्मी से कहा कि भगवान तो जंगल में मिलते हैं जहां लोग जाकर के पूजा पाठ करते हैं, और उनकी तपस्या करते हैं भगवान वहीं रहते हैं और भगवान से वही लोग मिलते हैं।(और पढ़ें -विश्वामित्र ब्रम्हार्षी कैसे बने )

 लक्ष्मी के मन में यह बात बैठ गई और वह 1 दिन सुबह के समय बिना अपनी मां से बताए हुए जंगल को चली गई भगवान को ढूंढने के लिए। लक्ष्मी जब जंगल पहुंची तो वह एक वटवृक्ष के नीचे बैठ करके जोर जोर से चिल्लाने लगी कि ,हे भोलेनाथ आ जाओ ,हे भगवान आ जाओ ,हमें तुम्हारे दर्शन करना है ।मैं बिना दर्शन किए वापस नहीं जाऊंगी हे भोलेनाथ आ जाओ।

वह रो रो करके करुण पुकार लगा रही थी संयोगवश भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती भी उधर से गुजर रहे थे। बच्ची की आवाज सुनकर के माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से कहा कि देखो भगवन यह बच्ची आपके दर्शन के लिए रो रही है चलो इसके दुख दूर करें।

 तब भगवान भोलेनाथ ने कहा कि इस बच्ची के भाग्य में सुख नहीं है। यह जिसके लिए आई है वह तो इसके भाग्य में है ही नहीं। मैं इसके दुख कैसे दूर करूं। और यह तो संसार है यहां सभी अपने अपने कर्मों का भोग भोग रहे हैं और अपने भाग्य का।माता पार्वती का ह्रदय उस बच्ची की आवाज को सुनकर द्रवित हो चुका था ।

उन्होंने जिद पूर्वक भगवान भोलेनाथ से आग्रह किया कि चलो जब तक आप नहीं जाएंगे उस बच्ची के पास ,तब तक हम आगे नहीं जाएंगे। माता पार्वती के आग्रह पर भगवान भोलेनाथ लक्ष्मी के पास पहुंचे और बोले कि बेटा तुम्हें क्या चाहिए। तब उस बच्ची ने कहा कि मुझे शिवजी से मिलना है मैं उनसे पूछूंगी कि हमारे भाग्य में सुख क्यों नहीं है। तब भगवान भोलेनाथ ने उस बच्ची के हाथ में स्वर्ण मुद्राओं से भरी हुई थैली दी और कहा बेटा इसको ले जाओ और आराम से अपना जीवन व्यतीत करो।

लक्ष्मी उस स्वर्ण मुद्राओं से भरी हुई थैली को लेकर प्रसन्नता पूर्वक घर की ओर चल दिया। रास्ते में उसे कुछ थकान का अनुभव हुआ और वह बैठकर विश्राम करने लगी अपनी थैली  को एक तरफ रख दिया और विश्राम के लिए आराम से बैठ गई।इतने में ही एक चील आया और उस थैली को लेकर के उड़ गया लक्ष्मी जोर जोर से चिल्लाती रही, रोती रही और रोते-रोते धीरे-धीरे अपने घर को पहुंची। जब माँ ने पूछा कि बेटी क्यों रो रही हो तब उसने बताया जो भी उसके साथ हुआ था कि हमें एक जंगल में बाबा जी मिले थे। उन्होंने स्वर्ण मुद्राओं कि मुझे थैली दी थी, और वो रास्ते में किसी चील ने मुझसे छीन लिया।

मां ने सोचा कि यह बच्ची तो केवल मनगढ़ंत कहानी सुना रही है। कहा ठीक है चलो जाओ और यह काम करो वह काम करो यही कहकर बात टाल दिया।बच्ची रात भर रोती रही सुबह होते ही वह फिर उस जंगल में पहुंच गई ,और उसी पेड़ के नीचे बैठ कर रोने लगी, और भगवान को पुकारने लगी ,कि भगवान सुन लो मेरी पुकार सुन लो।

 मुझ पर दया करो जो आपने दिया था वह मुझसे छीन गया।इस तरह से रोते हुए वह भगवान को पुकार रही थी बच्ची की पुकार सुनकर माता पार्वती के आग्रह से माता पार्वती के साथ फिर भगवान शिव वहां पर पहुंचे और उस बच्चे से कहा लो यह पारस मणि है इसको ले जाओ और इसको तुम किसी लोहे से जैसे ही स्पर्श करोगे वह सोना बन जाएगा। लक्ष्मी बहुत खुश थी इस बार वह सोच रही थी कि मैं इसको ऐसे संभाल कर रखूंगी कि अब इसको मुझसे कोई छीन नहीं सकेगा।

उस पारस मणि को उसने अपने सामने वाले जेब में रख लिया। क्योंकि उसके भाग्य में नहीं था कि वह सुख का जीवन व्यतीत करें उसकी भाग्य की रेखाएं उसका साथ नहीं दे रही थी। भगवान दे रहा था ,लेकिन वह संभाल नहीं पा रही थी उसका भाग्य उसके आड़े आ रहा था।

रास्ते में चलते हुए उस बच्ची को प्यास लग जाती है, और पानी पीने के लिए जैसे ही सरोवर में वह झुकती है उसकी जेब से पारस पत्थर उसी सरोवर में गिर जाता है। उस पारस पत्थर को मछली निगल लेती है।वह बच्ची फिर रोते हुए अपने घर पहुंचती है और अपनी मां को सारी कहानी सुनाती है, कि जो आज उसके साथ हुआ। भगवान शिव और माता पार्वती ने उसे पारस मणि दी और उस पारस मणि को लेकर के वह रास्ते से आ रही थी प्यास लगने के कारण पारस मणि सरोवर में गिर गई। मां ने उस बच्ची की बात सुनी और टाल दिया कि आज फिर यह मनगढ़ंत कहानी सुना रही है।

 वह 5 साल की छोटी बच्ची फिर पूरी रात रोती रही है और सुबह होते ही फिर से जंगल में उसी पेड़ के नीचे बैठ कर के वह रोने लगी और भगवान को पुकारने लगी। कि मेरी मदद करो जो भी आपने दिया वह मेरे पास नहीं बचा। तब माता पार्वती भगवान शिव से कहती हैं कि यह बच्ची बहुत जिद्दी है आप कहते हैं कि इसके भाग्य में नहीं है सुखी होना लेकिन यह प्रतिदिन कर्म कर रही है अपने भाग्य को बदलने के लिए। आप इसके भाग्य को बदल दे।

उस बच्ची की करुण पुकार से माता पार्वती का ह्रदय द्रवित हो जाता है और वह भगवान भोलेनाथ से जिद करने लगती हैं, कि इसके भाग्य में जो नहीं है उसको आप दें और इसका भाग्य बदल दें। यह बच्ची सुखी हो जाए। तब भगवान भोलेनाथ उस बच्ची के सामने उपस्थित होते हैं और कहते हैं कि लो बेटी यह एक स्वर्ण मुद्रा और घर को जाओ। अब उस बच्ची का भाग्य बदल चुका था।वह अपने घर को भगवान शिव की दी हुई एक स्वर्ण मुद्रा ले जाती है और अपनी मां को देती है। तभी मछली बेचने के लिए एक व्यक्ति आता है और वह मछली खरीद लेती है। उस मछली के पेट से पारस मणि निकलती है।

 बेटी लक्ष्मी उस मणि को देखकर बहुत खुश होती है ।मां से कहती है कि यह वही पारस मणि है ,जो भगवान शिव ने मुझे दिया था। खुशी खुशी वाह नाचने लगती है।अब उसकी मां को विश्वास हो जाता है कि बेटी की दृढ़ कर्म निष्ठा की वजह से उसके जीवन में सुख का आगमन हुआ है आज तक जो बेटी कह रही थी उसे मैं केवल मनगढ़ंत कहानी मानती थी। लेकिन यह सही कह रही थी।

लक्ष्मी की कर्म निष्ठा और भगवान पर विश्वास की वजह से उसके जीवन में लिखी हुई गरीबी दूर हो गई।

इस कहानी का आशय है कि भगवान पर विश्वास करते हुए कर्म करते रहना चाहिए कुछ पाने की यदि जिद है तो वह पूरी होनी चाहिए कि मैं यह हासिल कर लूंगा। उस बच्ची की जिद के सामने भगवान को उसके भाग्य को बदलना पड़ा। क्योंकि वह अपने भाग्य को बदलने के लिए निरंतर तत्पर थी वह नित्य कर्म कर रही थी। उसके कर्म ,श्रद्धा और भाव ,विश्वास के आगे भगवान को भी झुकना पड़ा और उसके भाग्य को बदल दिया।

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