व्यक्ति का वास्तविक बड़प्पन क्या होता है-vyakti ka vastvik badappan kya hota hai

 

व्यक्ति का वास्तविक बड़प्पन क्या होता है-vyakti ka vastvik badappan kya hota hai



व्यक्ति का वास्तविक बड़प्पन क्या होता है-vyakti ka vastvik badappan kya hota hai

बड़प्पन व्यक्ति का एक प्रकार का गुण होता है। जब आप दूसरों की गलती को माफ कर देते हैं। और उसके भाव को समझ लेते है। यही बड़प्पन है यही श्रेष्ठता है।

पास में अधिक धन होने पर मनुष्य अपने आप को बड़ा मान लेता है। पर वास्तव में वह बड़ा नहीं होता अपितु  छोटा ही होता है। ध्यान देने वाली बात है, कि यदि व्यक्ति धन के कारण बड़ा हुआ, तो वास्तव में वह स्वयं यदि उसके पास धन नहीं है तो वह छोटा ही सिद्ध हुआ। धन का अभिमान करने वाला व्यक्ति अपना तिरस्कार व अपमान करके तथा अपने को छोटा करके ही अपने में बड़प्पन का अभिमान करता है।

वास्तव में आप निरंतर रहने वाले हैं और धन, मान, बड़ाई, प्रशंसा, निरोगता, पद, अधिकार आदि सब जाने वाले है।

इनसे आप बड़े कैसे हुए?

इनके कारण बड़प्पन का अभिमान करना अपना पतन हीं करना है। इसी प्रकार निर्धनता, निंदा, रोग आदि सब के कारण अपने को छोटा मानना भी भूल है। आने जाने वाली वस्तुओं से कोई छोटा या बड़ा नहीं होता।

हमें ऐसा सोच कर चलना चाहिए कि इस संसार में केवल एक परमात्मा ही सत्य है बाकी सब कुछ असत्य है। जिसका अभाव हो जो वस्तु नहीं हो वही असत्य कहलाती है।

जिस वस्तु का अभाव होता है वह दिखाई नहीं देती है।

फिर संसार असत्य कैसे?

वास्तव में असत्य होते हुए भी यह संसार सत्य तत्व परमात्मा के कारण ही सत्य प्रतीत होता है और दिखाई देता है। इसका अर्थ यह है कि इस संसार की स्वतंत्र सत्ता  नहीं है।

जिस प्रकार हम आईने के सामने खड़े होते हैं और उसमें हमारा चेहरा और हम अपने आप को देखते हैं। ठीक उसी प्रकार यह संसार दिखाई देता है। आईना में मुख दिखता है वैसे ही संसार देखता है आईना में मुख देखता तो है पर वहां है नहीं ,ऐसे ही संसार दिखाई देता है।

वास्तव में एक परमात्मा तत्व की ही सत्ता है। परमात्मा में कोई परिवर्तन नहीं होता है जबकि संसार परिवर्तनशील है यहां निरंतर परिवर्तन होता रहता है।

संसार का ही अंश शरीर है जो निरंतर परिवर्तित होने वाला है

और परमात्मा तथा उसका अंश जीव कभी नहीं बदलने वाले हैं। ना बदलने वाला जीव बदलने वाले संसार का आश्रय लेता है, उससे सुख चाहता है यही गलती है।

निरंतर बदलने वाला क्या ना बदलने वाले को निहाल कर देगा?

उसका साथ भी कब तक रहेगा?

अतः संसार को अपना मानना, उससे लाभ उठाने की बात या इच्छा रखना, उसका आश्रय लेना यही गलती है। इस गलती का ही हमें सुधार करना है।

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है

,मामेकं शरणम व्रज,

मेरी शरण में आ जाओ  सांसारिक वस्तुओं का सदुपयोग तो करो, पर उन्हें महत्त्व मत दो। सांसारिक वस्तुओं के कारण अपने को बड़ा मत मानो।

यदि धन के कारण अभिमान है

पद के कारण अभिमान है

प्रतिष्ठा के कारण अभिमान है

तो यह सब सदा रहने वाले नहीं हैं।

धन आप पैदा करते हैं धन आपको पैदा नहीं करता।

आप धन का उपयोग करते हैं धन आप का उपयोग नहीं करता।

धन आप के अधीन है आप धन के अधीन नहीं।

धन के आप मालिक हैं आपका मालिक धन नहीं।

इन बातों को हमेशा याद रखना चाहिए आप धनपति बने ,लेकिन धन के दास न बने।

नाशवान पदार्थों को महत्व देने के कारण ही जन्म, मरण  ,बंधन दुख, संताप ,जलन आदि सब उत्पन्न होते हैं।

अतः भली-भांति विचार करना चाहिए कि मैं तो निरंतर रहने वाला हूं और यह पदार्थ आने जाने वाले हैं। अतः इन पदार्थों के आने-जाने का असर मुझ पर कैसे पड़ सकता है?

बस इतनी ही बात है।

धन को महत्व देने से और धन के कारण अपने को बड़ा मानने से मनुष्य धन का गुलाम बन जाता है। और इसी कारण वह दुख पाता है।

अन्यथा आप को दुख देने वाला है ही कौन?

धन आदि पदार्थ तोनिरंतर आने जाने वाले हैं वह आपको क्या सुखी और दुखी करेंगे?

जो आज है कल नहीं रहेगा यह ज्ञान होना आवश्यक है जिसके आने से ना तो हर्ष हो और ना जाने से दुख हो

यह तो निरंतर बहने वाली एक नदी के प्रवाह की तरह है। जो निरंतर बही जा रही है।

मान लीजिए यदि आपकी धनवत्ता  40 वर्ष रहने वाली है और उसमें से 1 वर्ष बीत गया, तो  बताओ आपकी धनवत्ता बढ़ी या घटी?

धनवता तो निरंतर घटती चली जा रही है और 40 वर्ष पूरे होते ही वह समाप्त हो जाएगी। पर आप वैसे के वैसे ही रहते हैं। जब धन नहीं था, तब भी आप वही थे और जब धन मिल गया तब भी आप वही रहे ,तथा धन चला जाए तब भी आप वही रहेंगे।

संसार की वस्तु निरंतर वही जा रही है।जिस मनुष्य पर इन बहने वाली वस्तुओं का असर नहीं पड़ता, वह मुक्त हो जाता है। जो वस्तुओं को स्थिर मानता है, वह वस्तुओं का गुलाम नहीं बनता।

पदार्थों को लेकर सुखी या दुखी होने वाला मनुष्य अपनी स्थिति से नीचे गिर ही गया,आने जाने वाले पदार्थों का असर ना पडना ही वास्तविक बड़प्पन है।

जो व्यक्ति क्षमाशील है दूसरे के अपराधों को या उसकी गलतियों को माफ करने वाला है।और सांसारिक वस्तुओं के मोह में न फंस कर उसे ईश्वर का मान करके उस पर अहंकार न करें, धन ,पद ,प्रतिष्ठा ,बडाई, मान सम्मान पर अहंकार ना हो, तो वह व्यक्ति के जीवन में उसका वास्तविक बड़प्पन है।

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