गुरु महान है-guru mahan hai
भारतीय संस्कृति में गुरु शिष्य की परम्परा तो प्राचीन काल से चली आ रही है। पहले गुरुकुल हुआ करते थे जिसमे वेद शास्त्र अध्यययन के साथ साथ शस्त्र ज्ञान दिया जाता था। आज के वर्तमान समय में यही शिक्षा बड़े बड़े स्कूल व विश्वविद्यालय में दी जाती है।
समय के अनुसार शिक्षा का रूप भी बदला है शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति के जीवन में निखार आता है। इसी के सहारे व्यक्ति जीवन में शिखर तक पहुँचता है और यह तभी संभव है तब गुरु की कृपा प्राप्त हो। जीवन में हम जो कुछ भी सीखते है वह केवल एक गुरु द्वारा ही संभव है।
गुरु ही जीवन के सादे कागज पर भाग्य की लकीरें बनाता है।जैसे कोई मूर्तिकार पत्थर को तराश कर सुन्दर मूर्ति का रूप देता है। उसी प्रकार गुरु हमारे जीवन को तराशकर एक सफल व्यक्तित्व देता है । उचित अनुचित का सही मार्गदर्शन करता है।
उसी के सम्मान में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। जिससे हमें यह एहसास बना रहे कि आज हम जो कुछ भी है वह एक गुरु की देन है। भारत में शिक्षक दिवस 5 सितम्बर को मनाया जाता है इस दिन सरकार शिक्षकों को सम्मानित करती है गुरु की महिमा अपार है इस सम्बन्ध में कबीरदास जे कहते है ।
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागौ पांय।
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बाते।।
कबीर दास जी कहते है की मैं बहुत दुविधा में हूँ कि
मैं पहले किसके चरण पकडूं ।यहाँ तो गुरु और भगवान दोनों है। मैं पहले किसका अभिवादन
करूं मै तो कुछ नहीं जनता था। की भगवान कौन हैं भगवान को मैंने तो गुरू के द्वारा
ही जाना है इसलिए मैं तो पहले गुरू के चरण पकडूँगा। जिनकी कृपा से मैंने भगवान को
जाना है इतनी अपार महिमा है गुरु की
गुरु ही ब्रम्हा है गुरु ही विष्णु हैं गुरु ही भगवान शिव है
1- गुरु एक ऐसा तेजपुंज है जिसके आते ही
संसार के सारे अंधकार और सारे संसय समाप्त हो जाते हैं।
2- गुरु एक ऐसी मृदंग है जिसके बजते ही अनाहत
नाद सुनने प्रारंभ हो जाते हैं।
3- गुरु ऐसा ज्ञान है जिसके मिलते ही सारे भय
समाप्त हो जाते हैं।
4- गुरु अमृत का कलश है जिसे पीकर कोई कभी
प्यासा नहीं रह सकता उसकी प्यास शांत हो जाती है।
5- गुरु की कृपा वह कृपा है जो सिर्फ कुछ
शिष्यों को विशेष रूप से मिलती है और कुछ पाकर भी समझ नहीं पाते।
6- गुरु एक ऐसा खजाना है जिसकी कोई कीमत नहीं
वह अनमोल है।
7- गुरु ओ सत चित आनंद है जो हमें हमारी
पहचान देता है।
8- गुरु एक ऐसी नदी है जो निरंतर हमारे प्राण
से बहती है।
9- गुरु और दीक्षा है जो भवसागर पार करती है।
10- गुरु की कृपा एक ऐसा प्रसाद है जिसके
भाग्य में हो उसे कभी कुछ भी मांगने की जरूरत नहीं पड़ती।
गुरु की महिमा guru ki mahima
शास्त्रों में गुरु का अर्थ बताया गया है
अंधकार को मिटाने वाला अज्ञान रूपी अंधकार को हटाकर प्रकाश रूपी ज्ञान को भरना
गुरु का कार्य होता है।
अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने
वाला ही गुरु कहा जाता है गुरु वह है जो अज्ञान का निराकरण करता है। जो धर्म का
मार्ग दिखाता है। आत्मज्योति पर पड़े हुए विधान को हटा देता है।
गुरु की प्रशंसा शास्त्रों ने की है
।प्रत्येक गुरु ने दूसरे गुरु का आदर प्रशंसा एवं पूजा सहित पूर्ण सम्मान दिया
है।गुरु ने जो नियम बताए हैं वह नियमों पर श्रद्धा से चलना उस संप्रदाय के शिष्य
का परम कर्तव्य है गुरु का कार्य नैतिक आध्यात्मिक सामाजिक समस्त प्रकार की
समस्याओं को हल भी करना है।राजा दशरथ के दरबार में गुरु वशिष्ट से भला कौन परिचित
नहीं है जिनकी सलाह के बगैर दरबार का कोई भी कार्य नहीं होता था।
संत कबीरदास जी कहते हैं कि भगवान के
रूठने पर तो गुरु की शरण रक्षा कर सकती है ,किंतु
गुरु के रूठने पर कहीं भी शरण मिलना संभव नहीं है।
सामान्य मनुष्य पतंगे के समान माया की चमक
दमक में पढ़कर नष्ट हो जाते हैं।जैसे पतंगा दीपक को पूर्ण समझ लेता है सामान्य जन
माया को पूर्ण समझ कर उस पर अपने आप को निछावर कर देता है। गुरु जीवन का वास्तविक
ज्ञान देता है और जीवन को सही राह पर लाने का कार्य करता है।
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