प्रसंशा मधुर अनुभूति है प्रसंशा सुनने में मन को भाती है-prashansha madhur anubhuti hai sunne me man ko bhati hai

 

प्रसंशा मधुर अनुभूति है प्रसंशा सुनने में मन को भाती है-prashansha ek madhur anubhuti

जब हम किसी व्यक्ति के गुणों की चर्चा करते है तो उसे प्रसंशा कहते है। और जब किसी के अवगुण की चर्चा करते है तो उसे निंदा कहते है । प्रसंशा व निंदा सत्य व मिथ्या दोनों तरह हो सकती है ।


यदि हम उसके गुण की चर्चा कर रहे हैं जो उस व्यक्ति में मौजूद है तो प्रसंशा व निंदा सत्य है ।और यदि हम उसके उस गुण की चर्चा कर रहे है जो उसमे है ही नहीं तो प्रसंशा व निंदा दोनों मिथ्या हैं ।


प्रसंशा व्यक्ति की विषेसताओं की चर्चा है प्रसंशा सुनने से मन हर्षित होता है प्रसंशा मधुर अनुभूति देती है। ।प्रसंशा व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है। अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देती है स्यंम अपने मुख से अपनी प्रसंशा करना अच्छी बात नहीं है। जब कोई व्यक्ति अपनी प्रसंशा दुसरे के सामने करता है तो इसका अर्थ है की उसमे अहंकार प्रबल  है

प्रसंशा मधुर अनुभूति है प्रसंशा सुनने में मन को भाती है-prashansha madhur anubhuti hai sunne me man ko bhati hai



झूठी प्रसंशा अहंकार को जन्म देती है

यदि व्यक्ति वास्तव में प्रसंशा का पात्र है तो उसे अपनी प्रसंशा दूसरों के द्वारा सुनाई देने लगती है। प्रसंशा का एक पहलू यह भी है की यह शहद के समान है यदि व्यक्ति की इसमें आसक्ती हो जाए तो वह उसी में मक्खी की तरह फंसकर सब खो देता है ।यदि प्रसंशा सुनकर अहंकार बढ़ जाय कुछ समय बाद उस अहंकारी व्यक्ति के पास प्रसंशा योग्य कुछ बचता नहीं है।

सच्ची प्रशंशा  सकारात्मक है

सच्ची प्रसंशा सकारात्मक नजरिया देती है वह उसके व्यक्तित्व व सद्गुण स्वयं को दिखाती है यदि व्यक्ति में दुर्गुण होते हुए सद्गुण नजर आने लगे तो वह अपने को सुधारने में लग जाता है

जब महर्षि विस्वामित्र ब्रम्हाऋषि  बनना चाहते थे इसके लिए उन्होंने कठोर तप करके ब्रम्हा जी को प्रसन्न करके वरदान माँगा की वह ब्रम्हाऋषि  बनना चाहते है ब्रम्हा जी ने कहा की यदि आप को  महर्षि वसिष्ठ ब्रम्हाऋषि कह दे तो आपको ब्रम्हाऋषि का पद प्राप्त हो जायेगा ।


महर्षि  वशिष्ठ के प्रति विश्वामित्र जी के मन में बहुत क्रोध भरा था उन्होंने एक यग्य किया जिसमे सबको आमंत्रित किया लेकिन महर्षि वशिष्ठ को नहीं बुलाया। यह अपमान महर्षि वशिष्ठ के पुत्रों को सहन नहीं हुवा और वे सब महर्षि विस्वामित्र के पास गए तब विश्वामित्र जी ने अपने तपोवल से सबको मार दिया ।

इतने पर भी उनकी संतुष्टि नहीं हुई और एक रात महर्षि वशिष्ठ को मारने पहुंच गए ।लेकिन वहा कुछ और ही देखा की महर्षि वशिष्ठ अपनी पत्नी अरुंधती से विश्वामित्र जी की प्रसंशा कर रहे थे ।इतना सब करने के बाद भी अपनी प्रसंशा महर्षि वशिष्ठ के मुख से सुनकर वे बहुत दुखी हुए और उनके सामने जाकर अपने किये कर्मो की माफी मांगने लगे और चरणों पर गिर गए । तब महर्षि वशिष्ठ जी ने उनको ब्रम्हाऋषि कह कर गले से लगा लिया  

यदि आपको किसी से कुछ काम करवाना है तो अप उसकी निंदा करेंगे तो वह आपका काम कदापि नहीं करेगा लेकिन यदि आपने उसकी प्रसंशा के दो बोल बोल दिए तो वह आपके कार्य करने के लिए तैयार हो जायेगा

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