भगवान को भोग लगाने से प्रसाद पर क्या असर पड़ता है

 भगवान को भोग लगाने से प्रसाद पर क्या असर पड़ता है

भगवान को भोग लगाने से प्रसाद पर सकारात्मक प्रभाव बढ़ता है।और जब उसका सेवन किया जाता है ,तो दिव्य अनुभूति होती है ।उसमें कुछ अलग ही स्वाद होता है। ऐसा क्यों होता है आइए जानते हैं।

जब भी किसी व्यक्ति से पूछा जाता है कि आपको किसके हाथ का बना हुआ भोजन सबसे स्वादिष्ट लगता है। तो जवाब मिलता है ,कि मेरी मां के हाथ का बना हुआ खाना मुझे बहुत ही अच्छा लगता है। बहुत ही टेस्टी लगता है। अब मां ने उसमें चाहे मसाला कम ही डाला हो। तेल चिकनाई की मात्रा भी बहुत कम डाली हो। बिल्कुल सादा भोजन बनाया हो। लेकिन फिर भी मां के हाथ से बने हुए भोजन में स्वाद बढ़ जाता है। ऐसा क्यों होता है।

भगवान को भोग लगाने से प्रसाद पर क्या असर पड़ता है


ऐसा इसलिए होता है कि जब मां भोजन बनाती है तो उसे आपके स्वास्थ्य का पूरी तरह से ध्यान होता है। मां के हाथ से बने हुए भोजन में उसकी ममता और प्यार के कारण जब भी आप वह भोजन करते हैं ,तो उसमें स्वाद में तो बढ़ोतरी होती ही है।साथ ही में वह भोजन आपके लिए पूरी तरह से पाचक होता है । आपके स्वास्थ्य के लिए हितकर होता है।

वही भोजन जब आप किसी होटल में खाते हैं तो इतना अच्छा भी नहीं लगता है चाहे उसमें कितने भी टेस्टी मसाले डाले गए हो। और होटल के बने भोजन को खाने से आपके पेट को भी भोजन को पचाने में तकलीफ होती है। एसिडिटी ,कब्ज  की जब समस्या होती है,और आप डॉक्टर के पास दिखाने के लिए जाते हैं ,तो डॉक्टर आपसे यही सवाल करता है ।कहीं आपने भोजन बाहर तो नहीं किया है ।बाहर का खाना तो नहीं खाया। अक्सर हमारे साथ ऐसा क्यों होता है।

इससे एक ही अर्थ निकलता है कि हम जिस तरह का अन्न ग्रहण करते हैं ,उसी तरह से हमारा मन होता है। हम जैसा भोजन करेंगे उसका असर हमारे मन पर होता है और वही हमारे शरीर पर भी होता है।

हमारी मां जब हमारे लिए भोजन बनाती है तो उसमें मां का प्रेम भाव मिला हुआ होता है।उसके मन में ऐसा भाव होता है ,कि यह भोजन हम अपने बेटे के लिए बना रही हूं ।अपनी बेटी के लिए बना रही हूं ।अपने पति के लिए बना रही  हूं।भोजन बनाते समय मां के मन में सकारात्मक ऊर्जा बहती रहती है। इसी पॉजिटिव एनर्जी के कारण जो वाइब्रेशन उत्पन्न होता है। वह उस अन्न पर पड़ता है ,तब वह प्रसाद बन जाता है।

वही भोजन अगर क्रोध के साथ बनाया जाए। रोते हुए भोजन को पकाया जाए। मन में कलुषित भावना एवं नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो। तो ऐसे अन्न पर नेगेटिव एनर्जी का प्रभाव बढ़ता है।

जब इस तरह के भाव रखकर भोजन को बनाया जाता है ,और वह भोजन जो भी व्यक्ति सेवन करता है ।उसके मन और शरीर पर बुरा असर पड़ता है।क्योंकि कलुषित भावना को मन में रखकर भोजन को बनाने वाला व्यक्ति जब आटे को गूथता है ,तो अपनी सारी गुस्सा उस आटे पर हाथ पटक-पटक कर उतार देता है। अब इस तरह से बने हुए भोजन का सेवन करने से शरीर और मन दोनों रोगी हो जाते हैं।

सकारात्मक ऊर्जा कैसे काम करती है।

इसके उदाहरण के लिए जब रिसर्च की गई तो गजब के परिणाम मिले।

एक प्रयोग कर्ता ने पानी की 2 बोतलों को भर कर रखा ।एक बोतल पर सकारात्मक संदेश लिखें ।और दूसरे बोतल पर नकारात्मक संदेश ,कुछ दिन बाद जब पानी का लैब में परीक्षण किया गया ।उसमें चौकानेवाले परिणाम निकले ।सकारात्मक संदेश वाले पानी की गुणवत्ता बढ़ गई ,और नकारात्मक संदेश वाले पानी की गुणवत्ता घट गई।

हम सभी जानते हैं ,कि भगवान तो अभोगता है। तो उन्हें भोग अर्पित करने की क्या आवश्यकता है।

हम जानते हैं कि भगवान का स्थान ऊंचे से ऊंचा है। भगवान वह शक्ति है जिसके सामने दुनिया नतमस्तक होती है। जब भी भगवान के सामने विनती की जाती है, तो कहते हैं कि आप ही हमारे माता-पिता हो और हम आपके बालक हैं। बिना आपकी कृपा के जीवन में सुख संभव नहीं है।

जब भी घर में भोजन बनता है तो सबसे पहले भगवान का भोग लगाते हैं। भगवान की कृपा से हम भोजन ग्रहण करते हैं, कि उनकी कृपा उस भोजन पर हो जाए और उस भोजन का स्वाद बढ़ जाए, स्वास्थ्य अच्छा हो जाए।

भगवान के कुछ भक्त ऐसे भी हैं जो भोजन ग्रहण करने से पहले भगवान को भोग लगाते हैं। भगवान को अर्पित कर फिर उनकी याद में भोजन ग्रहण करते हैं।

तो यह भोजन जो आपने भगवान की याद में बनाया है ,और खास भगवान के लिए तो आपके मन में विचार बहुत ही श्रेष्ठ हो जाते हैं। इन श्रेष्ठ विचारों का प्रभाव भोग पर पड़ता है, तो वह भोजन सिर्फ भोजन नहीं रहता वह प्रभु का प्रसाद बन जाता है।

ऐसा भोजन यदि आप नित्य ग्रहण करते हैं तो वह आपके स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव डालता है। आपके विचारों को निर्मल बनाता है।भगवान सिर्फ आपके भाव के भूखे हैं ।आप भगवान के प्रति जितनी शुद्ध भावना रखते हो। उतना ही आपका मन  गंगा जैसा पवित्र बन जाता है।

श्री कृष्ण जी को सुदामा के कच्चे चावल अच्छे लगे क्योंकि उसमें प्रेम का भाव था।

दुर्योधन के घर 36 प्रकार के व्यंजनों को छोड़ कर के विदुर के घर का साग उन्हें अच्छा लगा।

प्रेम के वशीभूत होकर भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए। भगवान सिर्फ आपके भाव के भूखे हैं कि आप का भाव कितना गहरा है उनके प्रति।

भगवान के सामने चढ़ाया गया प्रसाद और भी शक्तिशाली इसीलिए हो जाता है ,कि उसे बनाने वाले सिर्फ अन्न की शुद्धि ही नहीं ,लेकिन तन और मन की पवित्र भावना के साथ साथ यह भावना रखते हैं, कि यह भोग हमारे प्यारे भगवान के लिए बना है। इस प्रकार के श्रेष्ठ विचार ही उस भोग  को अमृत के समान बना देते हैं।

हमारी संकल्प शक्ति ,सकारात्मक सोच के साथ चढ़ाया गया प्रसाद अमृततुल्य हो जाता है उसको ग्रहण करने से शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से सुख और शांति प्राप्त होती है।

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