डर से डरे नहीं उसे दूर भगाएं -DAR SE DARE NAHI USE DOOR BHAGAYEN

डर से डरे नहीं उसे दूर भगाएं -DAR SE DARE NAHI USE DOOR BHAGAYEN



 

डर से डरे नहीं उसे दूर भगाएं -DAR SE DARE NAHI USE DOOR BHAGAYEN

जीवन की अनजानी, बिना देखी हुई, अंधेरी राहों में यह डर सदैव ही हमें डराता रहता है कि पता नहीं, क्या होगा, मन में भय बना रहता है और वह हमें भयभीत की ही रहता है। भय एक तरह का भ्रम होता है। लेकिन यह भयानक प्रतीत होता है जिसका सामना करने से भी हम घबराते रहते हैं। दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है। जिसका डर से सामना ना हुआ हो। कोई भी नया काम शुरू करने से पहले डर सामने होता है की कहीं कोई विफलता ना मिले। कार्य का जो निर्णय लिया गया है वह गलत तो नहीं है और इसके अतिरिक्त लोगों से मिलने वाली प्रतिक्रिया का भी डर होता है।

डर क्या होता है-DAR KYA HOTA HAI

वास्तव में डर कोई समस्या नहीं है। समस्या है केवल साहस के ना होने में। थोड़ा डर होना भी जरूरी है ताकि हम अपने कार्यों में जुटे रहे, लेकिन अधिक डर किसी भी तरह फायदेमंद नहीं है। इसके होने मात्र से व्यक्ति का लगभग आधा बल क्षीण हो जाता है।ऐसी परिस्थिति में वह सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं कर सकता। शेखर एक जीवनी के रचनाकार अज्ञेय ने डर के बारे में लिखा है कि डर डरने से होता है। यदि इस पर विजय प्राप्त करना है तो साहस चाहिए। वास्तव में डर अपनी सीमा का विस्तार तभी करता है जब हमारे अंदर साहस की कमी होती है।

साहस अपने आप में एक ऐसी शक्ति है-SAHAS APNE AAP ME EK AISI SHAKTI HAI

जिसके समक्ष डर अपना अस्तित्व खो देता है।क्योंकि साहस सबसे पहले यथार्थ की समक्ष की मांग करता है।फिर सोच विचार कर कदम उठाने और अपने उद्देश्य पर जमे रहने के लिए प्रेरित करता है।

सहसपुर जीवन जीना एक सीढ़ी भर नहीं है बल्कि जीवन का अंतहीन सिलसिला है।शोध भी इस बात की पुष्टि करता है कि साहस के समक्ष डर ज्यादा देर तक नहीं टिक सकता है।

साहस और सकारात्मकता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सकारात्मकता नैतिक साहस को बल देती है और साहस सकारात्मकता को। दुनिया में जितने भी बदलाव हुए हैं साहस उनके आधार में रहा है।

डर को पराजित करता है साहस-DAR KO PRAJIT KARTA HAI SAHAS

साहस किस तरह डर को  पराजित करता है। इसका एक उदाहरण बुद्ध के जीवन का है।

कुरु जनपद की रानी बुद्ध को पसंद नहीं करती थी।वह यह भी नहीं चाहती थी कि बुद्ध कभी उनके राज्य की सीमा में प्रवेश करें। लेकिन महात्मा बुद्ध उनके राज्य में 1 दिन प्रवेश कर गए।

जब उसे पता चला कि बुद्ध उसके इलाके में आ रहे हैं तो उसने नौकरों चक्रों को आज्ञा दी कि वह बुद्ध और उनके अनुयायियों का विभिन्न प्रकार से अनादर करें। बुद्ध के राज्य में प्रवेश करते ही लोगों ने उन्हें उल्टा सीधा कहना शुरू कर दिया।

कोई उन्हें देखकर हंसने लगा तो कोई गालियां बकने लगा। पर महात्मा बुद्ध अपनी जगह पर शांत रहे उन्होंने किसी को कोई भी जवाब नहीं दिया। लेकिन महात्मा बुध के साथ जो शिष्य थे वह घबराने लगे।

उनके लिए यह सब बड़ा ही विचित्र समय था उनके जीवन का विचित्र अनुभव था। आज तक उन्हें हर जगह प्रेम और सत्कार मिला था।

ऐसा व्यवहार उनके साथ अभी तक किसी ने नहीं किया था। शीशगढ़ इसका रहस्य नहीं समझ पा रहे थे कि यहां उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है।

आखिर बुद्ध के प्रिय शिष्य आनंद से यह सब सहन नहीं हुआ और उसने बुद्ध से कहा। भंते हमें यहां से चले जाना चाहिए, बुद्ध ने पूछा कहां जाना चाहते हो?

आनंद ने उत्तर दिया किसी दूसरे क्षेत्र में, जहां हमें कोई अपशब्द ना कहें इस पर बुद्ध बोले, वहां भी यदि कोई दूर व्यवहार करें तो?

इस पर आनंद ने जवाब दिया।

किसी और स्थान को चले जाएंगे। बुद्ध ने कहा तो हम कब तक भागते रहेंगे?

जहां गलत व्यवहार हो रहा हो और उससे मन भयभीत व परेशान हो उस स्थान को तब तक नहीं छोड़ना चाहिए जब तक वहां सामान्य स्थिति ना आ जाए।

क्या तुमने यह नहीं देखा कि मेरा व्यवहार संग्राम में बढ़ते हुए हाथी की तरह होता है। जिस प्रकार हाथी चारों ओर से लगने वाले बा डो को सहन करता रहता है।

उसी तरह हमें दुष्ट पुरुषों के अपशब्दों को सहन करते रहना चाहिए। देखना एक दिन वह थक जाएंगे और स्वयं उन्हें लगेगा कि वह गलत कर रहे हैं।

हमारा उद्देश्य उन्हें सही रास्ते पर लाना है। उनसे भागते रहना नहीं क्योंकि अगर हम भागे । तो उन में कभी सुधार नहीं होगा और जीवन भर हम इन परिस्थितियों से भागते ही रहेंगे।

इसलिए साहस के साथ इन परिस्थितियों में आगे बढ़ना चाहिए। महात्मा बुद्ध के इन शब्दों का हमें सदा ध्यान रखना चाहिए।

हर व्यक्ति के मन में किसी न किसी चीज का डर होता है और वह समय पर सामने भी आ जाता है। इस बारे में अमेरिका के मशहूर एंजायटी एंड फोबिया ट्रीटमेंट सेंटर के डायरेक्टर डॉक्टर फ्रेडरिक न्यूमैन का कहना है_कि डर अपनी जगह है, लेकिन उस डर को निकाला जा सकता है।बस व्यक्ति को समझाने की जरूरत है कि देखो यह काम इतने सारे लोग इतनी आसानी से कर रहे हैं। डर यानी फोबिया किसे नहीं होता।

लेकिन डर कोई ऐसी चीज नहीं की जिससे उबरा न जा सके। यह सच है कि हमें डर लगता है,लेकिन यह भी उतना ही सच है कि उस डर पर काबू पाया जा सकता है। यह जरूर है कि उसके लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। इसलिए डर से और डरने की जरूरत नहीं है उससे थोड़ा सा साहस से सामना करने की जरूरत है।

इसके लिए यह आवश्यक है कि डर पैदा करने वाली जगह या माहौल में तब तक बार-बार जाया जाए, जब तक डर पूरी तरह से निकल ना जाए। यह कार्य अपनी इच्छाशक्ति से किया जा सकता है या अपने किसी भरोसेमंद साथी की मदद से,

लेकिन डर को मन से निकालने के लिए सबसे पहले हमें यह तय करना होगा कि हमें डर से छुटकारा पाना है।

यह तो नहीं कहा जा सकता कि डर होता ही नहीं है। डर जरूर होता है, लेकिन वह सबसे अधिक हमारी कल्पनाओं में बसा होता है।डर से संबंधित हम विभिन्न तरह की कल्पनाएं मन में कर लेते हैं और हम अपने डर को बढ़ा लेते हैं।

जबकि वास्तव में इतना कुछ नहीं होता जिससे डरा जाए।

मनोचिकित्सकों के अनुसार डर-MANOCHIKITSAK KE ANUSAR DAR

इंसान डरता तब है जब वह अपनी भावनाओं के बारे में स्पष्ट नहीं होता है।मूल रूप से हम डरते तब हैं जब हम कुछ चाहते हैं पर उसे हासिल नहीं कर सकते या हमारे पास कुछ है और हम उसे खोना नहीं चाहते।

व्यावहारिक रूप से यदि देखा जाए तो हम किसी से कुछ चाहते हैं तो सीधा यह कहने के बजाय कि मुझे यह चीज कैसे मिलेगी, हमें यह कहना चाहिए कि मैं ऐसा क्या करूं जिससे मुझे यह चीज प्राप्त हो।

ऐसा करने से हम अपनी लेने वाली मानसिकता से निकलकर देने की मानसिकता में आ जाते हैं और हम चाहते हैं वह अपनी सामर्थ्य हुआ कार्य के अनुसार प्राप्त कर लेते हैं।

समाधान के बारे में अच्छी तरह से सोच सकते हैं।

इसलिए डर के भ्रम से मन को बाहर निकालना चाहिए और वस्तु स्थिति के प्रति स्पष्ट रहना चाहिए। डर हमारे जीवन में हमारे अभिन्न अंग की तरह घुला मिला है।हमारे शरीर का सुरक्षा तंत्र स्वयं हमें डरने पर मजबूर कर देता है और डर के समय हमारा पूरा अस्तित्व कापता है।

कोई कितना भी वीर क्यों न हो जीवन में कभी न कभी उसका सामना डर से जरूर होता है। आमतौर पर हम डर को जितनी बड़ी चुनौती समझते हैं ,वैसा कुछ नहीं होता है।

क्योंकि इसकी ज्यादातर परिस्थितियां हम स्वयं निर्मित करते हैं। इसलिए निर्भय होने की सबसे सहज विधि है हर परिस्थिति में तटस्थता के साथ सामना करना। मन में साहस बनाए रखना और परिस्थितियों के प्रति मन में स्पष्ट रहना। जितना हम मन को ब्रह्म से दूर रखेंगे उतना ही भय से दूर रहेंगे।

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