नवरात्रि के सातवें दिन करें माता कालरात्रि का ध्यान स्तुति होंगी सारी मनोकामनाएं पूर्ण जीवन सुखमय बनेगा

माता कालरात्रि का ध्यान मंत्र एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।

             लम्बोस्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यकतशारीरिणी ।।

                    वामपादोल्ललोहलता कंटक भुष्णा।

                  वर्धनमूर्ध्वजा कृष्णा कालरात्रि भयंकरी।।

माता दुर्गा के सातवें स्वरूप को कालरात्रि के नाम से जाना जाता है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है। लेकिन प्रत्येक समय शुभ फल देने वाली मानी जाती है। इसी कारण इनका एक नाम शुभंकरी भी है।


 नवरात्रि के सातवें दिन करें माता कालरात्रि का ध्यान स्तुति होंगी सारी मनोकामनाएं पूर्ण जीवन सुखमय बनेगा

दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगते हैं।

नवरात्रि के सातवें दिन करें माता कालरात्रि का ध्यान स्तुति होंगी सारी मनोकामनाएं पूर्ण जीवन सुखमय बनेगा


 इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णता मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं और सभी प्रकार की ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली है जिससे साधक भय मुक्त बनता है।

सातवें दिन देवी का पाठ देवताओं द्वारा देवी की स्तुति एवं देवी द्वारा देवताओं को वरदान

देवी जी ने जब दैत्य राज शुंभ का वध कर दिया तब इंद्र और सभी देवता अग्नि को आगे करके अपने मनोरथ व सिद्धि के लाभ से सभी दिशाओं को दमकते हुई है मुख्य कमलों से प्रकाशित करते हुए उस कात्यायनी देवी की स्तुति करने लगे।

शरणागत के दुख को दूर करने वाली देवी हम पर प्रसन्न हो जाओ। हे जगत की माता हे जगत जननी संपूर्ण संसार को चलाएं मान करने वाली संपूर्ण ब्रह्मांड को मोहित कर रखा है। पृथ्वी पर आपकी प्रसन्नता से ही मुक्ति संभव होती है। हे देवी जी संपूर्ण विद्या में आपके ही स्वरूप हैं।

इस संसार की सभी स्त्रियां आपकी ही मूर्तियां हैं। हे जगदंबा माता आप अकेली ने ही सारे संसार को व्याप्त किया हुआ है।आप की स्तुति क्या हो सकती है आप तो स्तुति से परे हो एवं परा वाणी हो ,जबकि आप सब की आधार स्वर्ग और मुक्ति को देने वाली हो। इसी से आप की स्तुति होगी आप की स्तुति के लिए अन्य कौन सी उत्तम उक्तियां हो सकती हैं।

आप संपूर्ण जनों के हृदय में बुद्धि के रूप में निवास करती हो। हे देवी स्वर्ग तथा मोक्ष देने वाली नारायणी आपको नमस्कार है। हे देवी आप सबकी सहायता कीजिए और सब के मनोरथ  को पूर्ण कीजिए।

हे देवी आप चर अचर की स्वामिनी हो आप ही एकमात्र संसार का आधार हो। पृथ्वी स्वरूप में विराजमान हो देवी आपका पराक्रम अतुलनीय है। आप ही जल स्वरूप में स्थित होकर इस सारे संसार को तृप्त करती हो।

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 अनंत पराक्रम वाली आप वैष्णवी देवी हो। सारे संसार की परम बीज माया विश्व का उप संहार में समर्थ है नारायणी देवी आपको नमस्कार है। आप सभी अर्थों को सिद्ध करने वाली और संपूर्ण मंगल करने वाली मंगला शिवा हो।

 आप शरणागत की रक्षा करने वाली हो आप तीन नेत्र वाली हो। हे नारायणी आपको नमस्कार है ।आप ही सृष्टि स्थिति एवं संहार करने में सनातनी शक्ति स्वरूप हो। आप सभी प्रकार के सुख को देने वाले और गुणों का आधार हो। हे नारायणी देवी आपको नमस्कार है।

 शरण में आए हुए दीन दुखियों की रक्षा में संलग्न रहने वाली सभी कष्ट का निवारण करने वाले आपको नमस्कार है हे नारायणी आप हंसो से जूते हुए विमान पर विराजमान, ब्रह्माणी के रूप को धारण करने वाली, कुश से अभिमंत्रित जल छिड़कने वाली नारायणी देवी आपको नमस्कार है।

 माहेश्वरी के रूप में त्रिशूल ,चंद्रमा और सर्पों को धारण करने वाली महावृषभ वाहन वाली नारायणी आपको नमस्कार है।मोर तथा मुर्गों से घिरी रहने वाली महाशक्ति को धारण करने वाली निष्पाप नारायणी आपको नमस्कार है। शंख, चक्र ,गदा ,सांग इन उत्तम अस्त्रों को धारण करने वाली वैष्णवी शक्ति रूप में नारायणी आपको नमस्कार है।

 हाथ में भयानक महा चक्र धारण करने वाली अपनी दाढ़ी पर पृथ्वी को धारण करने वाले वराह रूप धारण करने वाली शिव नारायणी आपको नमस्कार है।नरसिंह का रूप धारण करके दैत्यों को मारने के लिए त्रिभुवन की रक्षा करने में परायण नारायणी आपको नमस्कार है।

 हजारों उज्जवल नेत्र धारण करने वाली मुकुट धारिणी महा वज्र धारिणी ,वृत्रासुर के प्राण हरने वाली ,इंद्र शक्ति रूपा नारायणी आपको नमस्कार है।शिव दूती के स्वरूप से दैत्यों की बड़ी सेना को नष्ट करने वाली, महा शब्द करने वाली भयंकर रूप वाली नारायणी आपको नमस्कार है।

 भयानक विकराल मुख वाली मुंडमाला से विभूषित मुंडो का मंथन करने वाली चामुंडा नारायणी आपको नमस्कार है।लक्ष्मी, लज्जा ,महाविद्या ,श्रद्धा, पुष्टि, स्वधा ,महा रात्रि ,महाविद्या ,रूपा, नारायणी आपको नमस्कार है। हे नारायणी आपको नमस्कार है। सर्व ईश्वरी सर्वशक्ति युक्त हे दुर्गा देवी आपको नमस्कार है।

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 आप हमारी रक्षा करें ,आप हमारे भय को दूर करें ,आपको नमस्कार है।हे कात्यायनी आपको नमस्कार है ।हे भद्रकाली सभी दैत्यों को नष्ट करने वाली भड़कती हुई अग्नि की ज्वालाओं से भयानक आपका त्रिशूल हमारी भय से रक्षा करें, हे देवी आप को नमस्कार है।

अपने शब्दों के द्वारा सारे संसार को प्रेरित करके जो दैत्यों के तेज को नष्ट कर देता है वह आपका घंटा जैसे माता अपने पुत्रों को पाप से बचाती है वैसे ही हमारी रक्षा करें।आपके सुंदर हाथों की तलवार जो असुरों के खून से लथपथ हो रही है वह हमारा मंगल करें आपको प्रणाम है।

 हे देवी आप प्रसन्न हो।संपूर्ण रोगों को नष्ट करने वाले सभी की कामनाओं को पूर्ण करने वाली हे देवि आपको नमस्कार है।जो भी मनुष्य आप की शरण में आता है आप उसके जीवन के सारे संकट को दूर करती हैं और उसके जीवन में प्रकाश को भर देती हैं हे देवी आप को नमस्कार है।

 जो भी मनुष्य भक्ति पूर्वक आप की शरण में आते हैं वह दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं।इस प्रकार देवताओं ने माता देवी की भांति भांति तरह से स्तुति की और उनकी पूजा अर्चना की।

तब देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं से कहा मैं वरदान देने के लिए तैयार हूं अपनी इच्छा के अनुसार वर मांग लो संसार के उपकार के लिए मैं अवश्य वरदान देती हूं।तब देवता बोले हे सर्वेश्वरी आप त्रिलोक की समस्त पीड़ा शांत करें और इसी प्रकार हमारे शत्रुओं का भी नाश करें ।

तब देवी जी बोली है देवगण वैवस्वत मन्वंतर के 2800 युग के आने पर शुंभ निशुंभ नामी दो और महादैत्य पैदा हो जाएंगे।तब मैं नंद गोप के घर में यशोदा की गर्भ से अवतार लूंगी और विंध्याचल पर्वत पर जाकर निवास करूंगी। फिर पृथ्वी पर अत्यंत भयंकर रूप से अवतार लेकर विप्रचित्ति नामक घोर दैत्यों का वध करते समय मेरे दांत भी अनार के पुष्पों की तरह लाल हो जाएंगे।

 तब स्वर्ग से देवता और पृथ्वी पर मनुष्य मेरी स्तुति करते हुए मुझे रक्तदंतिका कहेंगे।उसके बाद जब पृथ्वी पर 100 वर्ष तक वर्षा नहीं होगी और पानी का अभाव होगा तब मुनि जन मेरी  अस्तुति करेंगे। उस समय में आयो निजा रूप में प्रकट होकर अपने सौ नेत्रों से उन मुनियों को देखूंगी।

तब मनुष्य मेरा शताक्षी नाम से कीर्तन करेंगे। यह देवता गण उस समय सारे संसार को जब तक वर्षा नहीं होती तब तक मैं अपने शरीर से उत्पन्न शकों के द्वारा पालूंगी तब पृथ्वी पर शाकंभरी नाम से विख्यात होंगी। इस अवतार में मैं दुर्गम नामक दैत्य का वध करूंगी तब मेरा नाम दुर्गा देवी के नाम से विख्यात होगा।

फिर मैं भयानक रूप धारण करके हिमालय पर रहने वाले राक्षसों का ऋषि मुनियों की रक्षा के लिए वध करूंगी तब सभी ऋषि मुनि भक्ति भाव से मेरी स्तुति करेंगे तब मेरा नाम भीमा देवी के नाम से विख्यात होगा।

जिस समय अरुण नामक दैत्य तीनों लोगों में भारी उपद्रव करेगा तब त्रिलोकी की रक्षा के लिए 6 पंजे वाले असंख्य भैरव का रूप धारण करके उस महान असुर का वध करूंगी उस समय लोग भ्रामरी कहकर मेरी स्तुति करेंगे।

इसी प्रकार जब जब भी विश्व में दैत्यों द्वारा बाधाएं उपस्थित होंगी तब तब मैं अवतार लेकर शत्रुओं का संघार करूंगी।

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