निष्काम कर्मयोगी बने-nishkam karmyogi bane
सकामी व्यक्ति-sakami vyakti
अनंत शक्ति का भंडार है हमारा शरीर
आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं
निष्कामी व्यक्ति -nishkami vyakti
जबकि निष्कामी व्यक्तियों के सामने लक्ष्य कामना नहीं, बल्कि भगवान होता है। वे अपने हर कर्म भगवान के लिए करते हैं। उनके मन में यह लोभ कभी नहीं जागता कि उनके कर्मो का फल उन्हें प्राप्त हो। निष्कामी व्यक्ति पूरी तरह से भगवान के लिए कर्म करके समर्पण भाव से जीवन जीते है उन्हें कभी कामना की रस्सी नहीं खीचती।
उनके द्वारा किये गए
कर्म से भगवान हमेशा उन्हें पुरस्कृत करते रहते है। उन्हें इतना मिल जाता है जितना सकामी व्यक्ति को
कभी नहीं मिलता वह उन्हें भगवान का आशीर्वाद मानकर ग्रहण करता है उसी में सबसे
ज्यादा प्रसन्न होता है।
इसी कारण भगवान श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन से निष्काम कर्म करने के लिए कहा है, ताकि वह संसार में अटके नहीं संसार के मोह-जाल में उलझे नहीं। यह संसार भ्रम जाल में उलझाता है। पहुचाता कहीं नहीं एकमात्र निष्काम कर्म करके ही संसार रूपी माया से पार पाया जा सकता है। सकामता से थोड़ा मिलता है और निष्कामता से इतना मिल जाता है की संभाले नहीं संभलता। वही व्यक्ति योगी हो जाता है निष्काम कर्मयोगी हो जाता है ।
कर्म शब्द का अर्थ है
प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा शारीरिक और मानसिक रूप से की जाने वाली क्रियाएं, जैसे शारीरिक और मानसिक रूप से मेहनत करना, पढ़ना लिखना ,बोलना चालना आदि क्रियाएं कर्म है।
योग शब्द का अर्थ होता है
समत्व का अर्थ के लाभ हानि जय पराजय सफलता
असफलता और सुख दुख जैसी किसी भी परिस्थितियों में मन का जरा भी विचलित ना होना।
किसी भी परिस्थिति में समान भाव से रहना ही योग है।
निष्काम कर्म योग
उपरोक्त लिखी हुई समस्त क्रियाएं जो
व्यक्ति द्वारा शारीरिक और मानसिक रूप से की जाती है इनमें फल की इच्छा होती है।
कि हमने यह कार्य किया है हमें लाभ होना
चाहिए या ऐसा ही व्यक्ति सोचकर कार्य करता है ,जिसमें
वह फल की आशा करता है। जबकि निष्काम कर्म योग ईश्वर को संपूर्ण रूप से समर्पित
होता है बिना फल की इच्छा किए ही कर्म करते रहना। फल की इच्छा ना करना ही निष्काम
कर्म योग है।
कोई भी व्यक्ति कर्म योगी तब तक नहीं बन
पाता जब तक कि वह अपनी इंद्रियों को अपने बस में नहीं कर लेता।जैसे एक कछुआ अपनी
इच्छा के अनुसार अपने अंगों को थोड़ा सा खतरा महसूस होने पर खोल के अंदर समेट लेता
है। और खतरा नहीं होने पर वह अपने अंगों को बाहर निकाल लेता है।ठीक इसी प्रकार
व्यक्ति अपनी इंद्रियों को अपने बस में कर लेता है तो वह किसी भी कार्य को पूरा
करने में समर्थ हो जाता है।
इस दुनिया में वही लोग असफल होते हैं
जिन्होंने अपने मन और इंद्रियों को काबू में नहीं किया है।
और ऐसे ही लोग हमेशा दुख आते रहते हैं
कर्म योगी कभी ना तो दुखी होता है और ना ही पछतावा करता है। जो भी होता है वह
ईश्वर पर संपूर्ण समर्पित होकर के कार्य करता है ।फल की इच्छा किए बिना कार्य करता
है।
निष्काम कर्म योगी अपनी भलाई के लिए कोई
भी कार्य नहीं करता वह हमेशा समाज की भलाई के लिए कार्य करता है।कर्मयोगी बन जाता
है और वह हमेशा प्रसन्न रहता है।उसे सुख-दुख समान रूप से लगने लगते हैं ना सुख में
ही वह उतावला होता है और ना दुख आने पर अपना धैर्य खोता है।
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