जीवन के चरण के साथ चंद्रमा के चरण की तुलना-jivan ke charan chandrma ke sath

जीवन के चरण के साथ चंद्रमा के चरण की तुलना

हमारे वेद और पुराणों में बताया गया है कि चंद्रमा व्यक्ति के मन का स्वामी होता है मन का प्रभाव मानव के शरीर पर पड़ता है जिस प्रकार व्यक्ति का मन होगा, उसी प्रकार उसका शरीर होगा यदि हमारा मन पूरी तरह से स्वस्थ है तो हमारा शरीर स्वस्थ रहेगा और यदि मन में किसी प्रकार का विकार है तो वह विकार हमारे शरीर पर भी दृष्टिगोचर होगा


अब हम जानते हैं कि मनुष्य के जीवन पर चंद्रमा का प्रभाव किस प्रकार पड़ता है

सूर्य और चंद्रमा के द्वारा धरती के समस्त जीव जंतुओं का जीवन क्रमिक रूप से चलता रहता है और इनका प्रभाव हमारे आसपास के वातावरण पर भी पड़ता है इन्हीं ग्रहों सूर्य और चंद्रमा के कारण ही पृथ्वी पर दिन और रात होते हैं और इनके अनुसार ही वर्ष का विभाजन किया गया है

जीवन के चरण के साथ चंद्रमा के चरण की तुलना-jivan ke charan chandrma ke sath


चंद्रमा पृथ्वी के नजदीक होने के कारण हमारे आस-पास यदि कोई परिवर्तन होता है वहां भी यह देखा गया है कि चंद्रमा का असर पृथ्वी पर सबसे ज्यादा पूर्णिमा के दिन पड़ता है इसका कारण है कि इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के नजदीक होता है और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पूर्ण रहता है इसका प्रभाव धरती पर संसार में निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर पड़ता है और मनुष्य के स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव  पड़ता है

चंद्रमा की कलाओं के अनुसार ही शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष का निर्माण हुआ है 15 दिन शुक्ल पक्ष और 15 दिन कृष्ण पक्ष यह महीने के 30 दिन चंद्रमा की चाल  के अनुसार ही दो भागों में बांटे गए हैं इन्ही पक्षों में अमावस्या और पूर्णिमा आती है पूर्णिमा के दिन मानव शरीर के स्वास्थ्य पर बड़े प्रभाव पडते हैं, इसका असर मानव जीवन पर पड़ता है

चंद्रमा से प्रसारित स्पंदन मानव शरीर को और मानव के मन को प्रभावित करता है जिससे हमारी संवेदनाएं और भावनाएं इच्छाएं प्रभावित होती है मन के दो भाग होते हैं

चेतन मन और अवचेतन मन

अवचेतन मन में अनेक प्रकार के संस्कार होते हैं जो हमारे स्वभाव और व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं अवचेतन मन को (शुद्ध मन) में विद्यमान विचार और संस्कार का भान नहीं होता ,यह संस्कार हमारे अनेक जन्मों से संचित होते हैं हमारे मन के संस्कार ,हमारे विचार और उनके अनुसार होने वाली क्रियाओं को प्रेरित करते हैं

 

हमारे मन में मौजूद संस्कार हम से कार्य करवाते हैं

चंद्रमा के स्पंदन हमारे विचारों के सूक्ष्म स्पंदनो की तुलना में अधिक सूक्ष्म  में होते हैं ,और हमारे मन में विद्यमान संस्कार के स्पंदन की तुलना में अल्प सूक्ष्म  में होते हैं, हमारे अंतर्मन में विद्यमान संस्कार के द्वारा निर्मित विचार के स्पंदन को वाहय मन में लाने की क्षमता जो है वह चंद्रमा के स्पंदन में होती है

हमारे वाहय मन में उत्पन्न विचारों का हमें एहसास होता है इस प्रकार मन में मौजूद संस्कारों की तीव्रता के अनुसार मानव का चाल चलन प्रभावित होता है

चंद्रमा पृथ्वी पर निवास करने वाले सभी प्रकार के प्राणियों, जीव-जंतुओं के मन को भी प्रभावित करता है प्राणियों के अवचेतन मन में भोजन करना, सोना और वासना जैसी प्रवत्ति के ही संस्कार होते हैं इसलिए तेज गति से आने वाले विचार भी इन्ही सरल प्रवृत्तियों के अनुरूप हो जाते हैं

चंद्रमा के प्रकाश और चंद्रमा की कला पर आधारित परिणाम

अमावस्या के दिन चंद्रमा का प्रकाश रहित भाग पृथ्वी की तरफ होता है जिससे पृथ्वी पर पूरी तरह से अंधकार हो जाता है अंधकार मुख्य रूप से रज और तम के स्पंदन को प्रसारित करता है

और इसके विपरीत में पूर्णिमा के दिन जिस दिन चंद्रमा पूर्ण रूप से प्रकाशमान होता है उस दिन रज और तम दोनों बहुत ही सूक्ष्म मात्रा में होते हैं

पूर्णिमा के समय जिस दिन चंद्रमा पूर्ण रूप से प्रकाशित होता है उस दिन मानव के मानसिक कार्यों में वृद्धि होती है उसके अंतर्मन में उत्पन्न हुए संस्कार के अनुसार मानसिक कार्यों में वृद्धि होती है

चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव मानव के मन पर

पूर्णिमा और अमावस के दिन चंद्रमा और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण एकत्रित हो जाता है जबकि अन्य दिनों में भी चंद्रमा पृथ्वी को आकर्षित करता है परंतु पूर्णिमा अथवा अमावस्या की तुलना में यह आकर्षण इतना शक्तिशाली नहीं होता है

सामान्यतः सांस लेने की अपेक्षा जब व्यक्ति गहरी सांस लेता है तो उसके मुख में 3 गुना वायु की मात्रा प्रविष्ट होती है अब इस उदाहरण को चंद्रमा तथा उसका पृथ्वी पर खिंचाव के संदर्भ में देखते हैं पूर्णिमा तथा अमावस्या के दिन पूरा चंद्रमा पृथ्वी को आकर्षित करता है इसका परिणाम उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है

पूर्णिमा और अमावस्या के दिन वायुमंडल का चंद्रमा से 3 गुना भाग खींचता है

पूर्णिमा और अमावस्या के दिन पृथ्वी पर विद्यमान ब्रह्मांड के पंच तत्व मूल रूप से पृथ्वी तत्व, मूल आप तत्व, और मूल बायु तत्व, चंद्रमा की ओर आकर्षित होते हैं इससे एक प्रकार का सूक्ष्म स्तरीय उच्च दबाव का क्षेत्र निर्मित होता है इस प्रक्रिया में स्थल स्तर पर जब जल चंद्रमा की ओर आकर्षित होता है तब जल की अपेक्षा जल में विद्यमान वायु रूपी घटक जिसको जल की भाप कहते हैं जल के ऊपर आती है, और सूक्ष्म स्तरीय उच्च दबाव के क्षेत्र में प्रवेश करती है हानिकारक शक्तियां या नेगेटिव एनर्जी मुख्यता वायु के रूप में ही होती है

इसलिए वह इन्ही सूक्ष्म उच्च दबाव के क्षेत्र में आकर्षित होती है यहां पर वह सभी एकत्रित होते हैं और उन्हें एक दूसरे से अधिक शक्ति मिलती है जिसके परिणाम स्वरुप मनुष्य पर अनिष्ट शक्तियों का आक्रमण शारीरिक और मानसिक स्तर पर 3 गुना बढ़ जाता है

अमावस्या और पूर्णिमा को चंद्रमा के बढ़ते हुए प्रभाव के परिणाम

अमावस्या के दिन राज और तम फैलाने वाली अनेक शक्तियां भूत, प्रेत, पिशाच, रहस्यमई,  कर्मकांडो जैसे काला जादू में फंसी हुई है लोग प्रमुख रूप से राजसिक और तामसिक लोग अधिक प्रभावित होते हैं और अपने रज और तम के कार्य के लिए काली शक्तियों को प्राप्त करते हैं यह दिन अनिष्ट शक्तियों के कार्य के अनुकूल होता है इसलिए अच्छे कार्य के लिए अपवित्र माना जाता है

चंद्रमा के  रज ,तम से मन के  प्रभावित होने के कारण पलायन करने वाला माना जाता है आत्महत्या अथवा भूतों द्वारा आवेशित होना आदि घटनाएं अधिक मात्रा में इसी पक्ष में होती हैं विशेष रूप से रात्रि के समय जब सूर्य से मिलने वाला ब्रह्मांड में मूलभूत अग्नि तत्व जिसको तेजस्वी कहते हैं वह स्थित नहीं रहता है अमावस्या की रात अनिष्ट शक्तियों के लिए मनुष्य को कष्ट पहुंचाने का स्वर्णिम अवसर होता है

पूर्णिमा की रात में जब चंद्रमा का प्रकाशित भाग पृथ्वी की ओर होता है अन्य रात्रियों की तुलना में मूलभूत सूक्ष्म स्तरीय रज और तम अल्प मात्रा में प्रक्षेपित होते हैं अतः इस रात में अनिष्ट शक्तियों रज ,तम  नियुक्त लोगों  कर्मकांड काला जादू करने वाले लोगों को रज और तम की न्यूनतम मात्रा उपलब्ध होती है तथा अनिष्ट शक्तियां भूत प्रेत के साथ पूर्णिमा के दिन चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण का लाभ उठाकर कष्ट की तीव्रता को बढ़ा देती हैं

आध्यात्मिक शोध के द्वारा यह स्पष्ट भी हो चुका है, कि अमावस्या और पूर्णिमा के दिन मनुष्य पर होने वाले प्रभाव में सूक्ष्म अंतर होता है पूर्णिमा के चंद्रमा का प्रतिकूल परिणाम साधारण स्थूल शरीर पर जबकि अमावस्या के चंद्रमा का परिणाम मन पर होता है

पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पृथ्वी के नजदीक होता है जिससे पानी के स्तर को चंद्रमा अपनी ओर खींचता है ज्वार भाटा इसी का परिणाम है मनुष्य के शरीर में भी 85% पानी होता है इसलिए मनुष्य के शरीर में भी पानी की गति और गुणवत्ता के कारण इसका असर सीधा हमारी सेहत पर पड़ जाता है इसकी वजह से मन में बेचैनी और नींद की कमी के साथ-साथ भावनात्मक असंतुलन भी होता है और इसका असर हमारे पाचन तंत्र को भी प्रभावित करता है सिर दर्द और माइग्रेन जैसी समस्या उत्पन्न होती है

इस कथन में वैज्ञानिकों के अनुसार चंद्रमा का प्रभाव मनुष्य के शरीर पर तेजी से पड़ता है पूर्णिमा के दिन मनुष्य के शरीर के रक्त के न्यूरान्स में तेजी से वृद्धि होती है जिससे सामान्य की तुलना में उत्तेजना में भी बढ़ोतरी हो जाती है यह  असर पूर्णिमा को देखा जा सकता है

हानिकारक परिणामों से सुरक्षा पाने के उपाय

अमावस्या तथा पूर्णिमा के दिन चंद्रमा के हानिकारक प्रभाव अध्यात्मिक कारण से होते हैं इसलिए अध्यात्मिक उपचार और साधना ही इनसे बचने में सहायक होती है

ऐसे में शारीरिक और मानसिक विचारों को दूर करने में ध्यान की अहम भूमिका होती है ध्यान एकाग्रता के चरम का रूप है या आपके मन को एकाग्र चित्त करने में मदद करता है और आपको सभी सांसारिक वस्तुओं से अलग करता है ध्यान योग के द्वारा मनुष्य में एक दिव्य शक्ति उत्पन्न होती है जिससे अनिष्ट कारी शक्तियों का प्रभाव मानव शरीर पर नहीं पड़ता है इस दिन उपवास रखना चाहिए और अपने इष्ट का ध्यान करना चाहिए जिससे अमावस्या और पूर्णिमा के हानिकारक प्रभाव हमारे मन व मस्तिष्क व शरीर पर नहीं पडे

Previous
Next Post »