पृथ्वी पर जीवन कैसे संभव हुआ-prathvi par jivan kaise sambhav huwa

पृथ्वी पर जीवन कैसे संभव हुआ-prathvi par jivan kaise sambhav huwa

पृथ्वी पर जीवन कैसे संभव हुआ-prathvi par jivan kaise sambhav huwa

 धारणा है कि लगभग 4 अरब वर्ष पूर्व समुद्र की गहराइयों में ऐसे जीव प्रकट हुए  जो हाइड्रोजन, लौह ,गंधक के यौगिकों के अणुओं की ऊर्जा का दोहन कर सकने में समर्थ थे

साढ़े तीन अरब वर्ष पूर्व प्रकाश को ऊर्जा का स्रोत बना सकने वाले साइनोबैक्टीरिया की उत्पत्ति हुई

जिसके आधार पर वर्तमान पारिस्थितिकी तंत्र के विकास की संभावना को जोर मिलता है

धरती पर जब वनस्पतियों का विकास हो रहा था तो उस समय प्रमुख समस्या थी सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणें

उस समय के वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बहुत ही कम थी और इन किरणों को सोखने वाली ओजोन भी नहीं थी

परंतु पानी पराबैंगनी किरणों को सोखने की क्षमता रखता है अतः समुद्र की गहराई में प्रकाश की ऊर्जा का छरण होना संभव था जहां पराबैंगनी किरणों से मुक्त प्रकाश पहुंचे

यह एक चमत्कार ही था की ऐसे स्थानों पर साइनोबैक्टीरिया की उत्पत्ति होने लगी और क्लोरोफिल युक्त बैक्टीरिया इन अवशेषों पर जमने लगे

इस तरह तीन अरब वर्ष तक, विकास की अवस्था इसी तरह बनी रही क्लोरोफिल युक्त बैक्टीरिया के द्वारा उत्पादित ऑक्सीजन के कारण हवा और पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती गई और उसके कारण विभिन्न प्रकार के जीव प्रजातियों का विकास संभव हो सका

शर्करा सभी जीव धारियों की उर्जा का आधार है ऑक्सीजन का उपयोग किए बिना ग्लूकोज के एक अणु से जितनी ऊर्जा मिल सकती है उससे 15 गुना ऊर्जा तब मिलती है, जब ऑक्सीजन का उपयोग किया जाए

परंतु ऊर्जा के दोहन में ऑक्सीजन का उपयोग करने के लिए नई रासायनिक प्रक्रियाओं की आवश्यकता थी ऑक्सीजन से मिलने से बैक्टीरिया से बड़े आकार के और जटिल संरचना वाले जंतुओं के विकास की प्रक्रिया आसान हो गई

यह एक कोशिकीय जीव चाबुक नुमा तंतुओं की सहायता से पोषक पदार्थ के कणों को अपनी ओर खींच सकते थे

यही नहीं इनमें से कुछ जंतु तैर सकते थे और बैक्टीरिया वनस्पतियों और अन्य प्रकार के जीव जंतुओं का शिकार भी करने में सक्षम थे

वैज्ञानिकों के अनुसार यह घटना 60 करोड़ वर्ष पहले घटी है इसके बाद धीरे-धीरे एक कोशिकीय जंतु से बहुकोशिकीय  जंतुओं का जन्म हुआ

इन जंतुओं ने अपनी शारीरिक सुरक्षा के लिए अपने शरीर को कांटों से आच्छादित कर लिया ,और भीतर अस्थि कंकाल एवं बाहर सुरक्षा कवच का निर्माण भी कर लिया

इस तरह कवच कंकाल धारी जीव की उत्पत्ति हुई इसके बाद में स्पंज पैदा हुए जिनके शरीरों में छेद होते हैं

और शरीर अंदर से खोखला होता है यह एक ही स्थान पर स्थिर रहकर भोजन के कणों को पानी के प्रवाह के द्वारा ग्रहण कर लेते हैं समुद्र के नीचे बड़ी मात्रा में संचित भोजन के कण होते हैं इन्हें ग्रहण करने के लिए ऐसे शरीर की आवश्यकता थी जिसमें शिर, धड़, पूछ, मांसपेशियां और मस्तिष्क हो इस तरह कृमियों से लेकर झींगों, मधुमक्खियों, मछलियों, पक्षियों, बंदरों और जंतुओं का निर्माण संभव हो सका

इसके बाद मनुष्य का निर्माण हुआ इसी तरह धीरे-धीरे पृथ्वी पर जीव जंतुओं के विकास का प्रारंभ हुआ और सबसे अंत में इस विकास की प्रक्रिया में मनुष्य का विकास हुआ

इनकी सबकी सहायता से पर्यावरण शक्तिशाली हुआ यही पारिस्थितिकी तंत्र है जहां पर सभी जीव जंतु आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं

लेकिन मनुष्य अपनी बढ़ती हुई स्वार्थ वृद्धि के कारण आज इस बात को भूल गया है, कि वह इतने लंबे विकास की एक कड़ी है जिसका अस्तित्व उसके पहले आए प्राणियों और वनस्पतियों के बिना संभव नहीं था

धरती पर सभी कार्य समय पर होते हैं जाड़ा ,गर्मी ,बरसात अपने निर्धारित समय पर ही यह ऋतुएं  आती हैं सबका इस प्रकृति के द्वारा एक निर्धारित समय है

और इन्हीं नीतियों के कारण वर्षा ऋतु सबसे महत्वपूर्ण ऋतु  मानी जाती है विशाल घने बादल पानी को वाष्प बनाकर आकाश में उड़ा ले आते हैं और हर  जगह बरसते हैं

तो सूखी बंजर धरती और प्यासे सभी जीव जंतु जल से सरोवर हो उठते हैं इस प्रकार बरसात सबको जीवन देती है और धरती को हरा-भरा बना देती है यदि वर्षा समय पर ना आती तो यह चिंता का विषय है

आज मनुष्य यह भी जानता है, कि इन पेड़ पौधों और वनस्पतियों के द्वारा ही उसका जीवन संभव हो सका है और इन्हीं के विकास की मनुष्य एक कड़ी है फिर भी अपनी स्वार्थपरता के कारण मनुष्य जंगलों पेड़ों को काट कर के हरी भरी धरती को बंजर बना रहा है

हमारे जीवन में ऑक्सीजन का महत्वपूर्ण स्थान है जो हमें इन पेड़ों के द्वारा ही मिलता है इसलिए हमें वृक्ष लगाने चाहिए जिससे पर्यावरण का संतुलन बना रहे वह जीवन आनंदित हो सके

आज के समय में जीवन को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारक है वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, यदि धरती का पर्यावरणीय संतुलन बना रहे तो जीवन की राह आसान होती है

इसका उदाहरण है

कि आज भी केदारनाथ धाम की घाटी में ब्रह्म कमल खिले हुए हैं जो सितंबर में ही मुरझा जाते थे इस समय माह नवंबर चल रहा है फिर भी ब्रह्मा कमल ज्यों के त्यों खिले  हुए है करोना  जैसी जटिल महामारी के कारण लोगों का आवागमन केदारनाथ घाटी में नहीं हो सका जिससे वहां का वातावरण पर्यावरण सुधरा

इसी कारण माह नवंबर 2020 में भी ब्रह्म कमल खिले हुए हैं मनुष्य अपने कुकृत्य के द्वारा पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कर रहा है

आवश्यकता है हमें सचेत होने की कि हम ऐसा कार्य करें जिससे पर्यावरण का संतुलन बना रहे पारिस्थितिकी तंत्र में जिस प्रकार मनुष्य की उत्पत्ति हुई है

मनुष्य की उत्पत्ति के विकास में सहायक इन वनस्पतियों को संरक्षित किया जाए अधिक मात्रा में पेड़ पौधे लगाए जाएं प्रदूषण पर पूरी तरह से रोकथाम की जाए जिससे जीवन के जीने की राह आसान हो सके और धरती पर  जीवन में आनंद मिल सके

 

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