प्रेम की पीड़ा से मुक्त कैसे हों-prem ki pida se mukt kaise ho
प्रेम की परिभाषा -prem ki paribhasha
प्रेम के प्रकार -prem ke prakar
यह आसक्ति वासनात्मक एवं भावनात्मक दोनों प्रकार की हो सकती है। कई बार वासना के चक्कर में पड़कर मनुष्य का मन आकर्षित होता है। और कई बार भावनाएं उसे विवश करती हैं।
कई बार उसके सौन्दर्य रूप से सम्मोहित होता है। तो कई बार सेवा व सहायता से। प्रेम के धागे उसे लपेटे रहते हैं। और इन धागों की उलझन उसे जन्मो तक उलझाए रहती है ।
प्रेम की पीड़ा से मुक्ति -prem ki pida se mukti
इससे मुक्ति का एक मात्र साधन है। अपने चित्त को निर्मल बनाकर मन को शान्त रखकर। वैसे यह सामान्य जन की पहुँच से बाहर है। लेकिन अभ्यास से मन को एकाग्र करके इसकी पीड़ा से बचा जा सकता है। इस सम्बन्ध में एक सच्ची घटना है। काफी समय पहले वाराणसी में एक महात्मा जी रहते थे।
उनका नाम था विमल तीर्थ वह बहुत सिद्ध संत थे। आकाश में उड़ना, पानी पर चलना, अद्रश्य होना, आदि कई दिव्य शक्तियों के स्वामी थे। उन्होंने कई मरे हुए लोगों को जीवन दान दिया था। उनकी उम्र करीब चार सौ साल थी।
लेकिन देखने में वह तीस चालीस साल के युवा लगते थे। उनके कई भक्त थे यहाँ तक काशी नरेश नित्य प्रातः उनके दर्शन करने जाते थे। विमल तीर्थ जी कभी किसे के घर नहीं जाते थे। केवल एक घर जाते थे। जो एक ब्राम्हण दम्पति का घर था। उसी परिवार में एक नौ वर्ष की कन्या रहती थी। उस कन्या का नाम स्वर्णा था।
वह विमल तीर्थ जी से काफी घुल मिल गयी थी विमल तीर्थ जी को भी उस कन्या से काफी लगाव था। वे उसे अपनी पुत्री की तरह प्रेम करते थे। स्वर्णा जब कभी बीमार होती तो महात्मा जी उसे अपने तपोवल से सही कर देते थे। जब कोई स्वर्णा के बारे में उनसे बात करता तो महात्मा जी कहते की भगवन ने कौन सी मोह माया में बांध दिया कि चाहकर भी अलग नहीं हो सकते।
एक बार विमल तीर्थ जी बहार गए थे। तब स्वर्णा बीमार ही गयी उसने उन्हें बहुत याद किया। और मर गयी जब महात्मा विमल तीर्थ जी वापस लौटे तो
यह दुखद समाचार प्राप्त हुआ। इसे सुनकर वह बहुत वेहल हो
गए और अगले तीन दिन में शरीर त्याग दिया। यह घटना जिस किसी ने सुना वह
चकित हो गया। की जो चार सौ सालो में नहीं मरा उसे एक नौ वर्ष
की कन्या के मोह ने मार दिया ।
अनंत शक्तियों का भण्डार है हमारा शरीर
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