प्रेम की पीड़ा से मुक्त कैसे हों-prem ki pida se mukt kaise ho

 प्रेम की पीड़ा से मुक्त कैसे हों-prem ki pida se mukt kaise ho

संसार के समस्त प्राणी प्रेम  के बंधन में बंधे रहते हैं यह एक ऐसी डोर होती है जिससे संसार के समस्त प्राणी बंधे रहते हैं वैसे कहते है की मन से नजदीक कोई नहीं लेकिन जीवन में कई बार ऐसा होता है 
की यह साबित हो जाता हैकि मन से कोई दूर नहीं 

मन की कई अनुभूतियाँ उठती है और उसी में समा जाती हैं जिन लोगों ने मन को जाना है वह कहते हैं की मन सागर से अधिक गहरा और पर्वत से ज्यादा ऊंचा है और मन में धारण करने की शक्ति अनंत है 

प्रेम की परिभाषा -prem ki paribhasha

जब हम किसी की तरफ आसक्त हो जाते है और अनायास उसकी तरफ खिंचते चले जाते हैं अपनी भावनाओं के साथ उसकी भावना का एक प्रबल रिश्ता बन  जाता है  हमें एक अद्रश्य डोर इतनी प्रबलता से उसके साथ बांध देती है की हम चाहकर उसको तोड़ नहीं पाते 

प्रेम के प्रकार -prem ke prakar       

यह आसक्ति वासनात्मक एवं भावनात्मक दोनों प्रकार की हो सकती है कई बार वासना के चक्कर में पड़कर मनुष्य का मन  आकर्षित होता है और कई बार भावनाएं उसे विवश करती हैं

कई बार उसके सौन्दर्य रूप से सम्मोहित होता है तो कई बार सेवा व सहायता से प्रेम के धागे उसे लपेटे रहते हैं और इन धागों की उलझन उसे जन्मो तक उलझाए रहती है 

प्रेम की पीड़ा से मुक्ति -prem ki pida se mukti

प्रेम की पीड़ा से मुक्त कैसे हों-prem ki pida se mukt kaise ho


इससे मुक्ति का एक मात्र साधन है अपने चित्त को निर्मल बनाकर मन को शान्त रखकर वैसे यह सामान्य जन की पहुँच से बाहर है लेकिन अभ्यास  से मन को एकाग्र करके इसकी पीड़ा से बचा जा सकता है इस सम्बन्ध में एक सच्ची घटना है काफी समय पहले वाराणसी में एक महात्मा जी रहते थे

उनका नाम था विमल तीर्थ वह बहुत सिद्ध संत थे आकाश में उड़ना, पानी पर चलना, अद्रश्य होना, आदि कई दिव्य शक्तियों के स्वामी थे उन्होंने कई मरे हुए लोगों को जीवन दान दिया था उनकी उम्र करीब चार सौ साल थी

लेकिन देखने में वह तीस चालीस साल के युवा लगते थे उनके कई भक्त थे यहाँ तक काशी नरेश नित्य प्रातः उनके दर्शन करने जाते थे विमल तीर्थ जी कभी किसे के घर नहीं जाते थे केवल एक घर जाते थे जो एक ब्राम्हण दम्पति का घर था उसी परिवार में एक नौ वर्ष की कन्या रहती थी उस कन्या का नाम स्वर्णा था

वह विमल तीर्थ जी से काफी घुल मिल गयी थी विमल तीर्थ जी को भी उस कन्या से काफी लगाव था वे उसे अपनी  पुत्री की तरह प्रेम करते थे स्वर्णा जब  कभी बीमार होती तो महात्मा जी उसे अपने तपोवल से सही कर देते थे जब कोई स्वर्णा के बारे में उनसे बात करता तो महात्मा जी कहते की भगवन ने कौन सी मोह माया में बांध दिया कि चाहकर भी अलग नहीं हो सकते

एक बार विमल तीर्थ जी बहार गए थे तब स्वर्णा बीमार ही गयी उसने उन्हें बहुत  याद किया और मर गयी जब महात्मा विमल तीर्थ जी वापस लौटे तो यह दुखद समाचार प्राप्त हुआ इसे सुनकर वह बहुत वेहल हो गए और अगले तीन दिन में शरीर त्याग दिया यह घटना जिस किसी ने सुना वह चकित हो गया की जो चार सौ सालो में नहीं मरा उसे एक नौ वर्ष की कन्या के मोह ने मार दिया 


भक्तो पर भगवान् की कृपा 

अनंत शक्तियों का भण्डार है हमारा शरीर 



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