इस जीवन में जाने में या अनजाने में कहीं कोई न कोई गलती हो जाती है। वह गलती चाहे हमारे वचन के द्वारा हो हमारी बोली गई वाणी के द्वारा हो या फिर कोई न कोई ऐसा कार्य हो जिसके कारण सामने वाले व्यक्ति को दुख मिलता है।लेकिन जब हम एकांत में बैठ कर के उस पर गहराई से विचार करते हैं तब हमें यह मालूम पड़ता है कि यह कार्य हमने गलत कर दिया या यह बात हमने गलत बोल दी।
जो हमें ऐसा नहीं करना चाहिए या ऐसा नहीं बोलना चाहिए था। अपनी गलती का एहसास होने पर व्यक्ति को आत्मग्लानि महसूस होने लगती है। लेकिन यदि हमारी गलती को सामने वाला व्यक्ति माफ कर दे, क्षमा कर दें तो थोड़ी सी संतुष्टि मिल जाती है। इस लेख में हम विस्तार पूर्वक चर्चा करेंगे क्षमा करना क्यों जरूरी है।
क्षमा
क्या है –chhama kya hai
जब कोई व्यक्ति
आपके साथ ऐसा व्यवहार करता है जो आप को अशांत कर दे और क्रोध पैदा कर दे उस समय
उत्पन्न क्रोध को शांत कर लेना और उस व्यक्ति के प्रति दया का भाव आ जानाया उसने
जो कुछ किया उसे सहन कर लेना बर्दाश्त कर लेना ही क्षमा है। क्षमा का अभिप्राय बल
से भी है। क्षमा वीरो का आभूषण है। जब हम पूजन के समय ईश्वर की आराधना करते हैं तो
आराधना करने के पश्चात हम क्षमा प्रार्थना करते हैं, की
है ईश्वर जो भी गलतियां हमसे जाने अनजाने में हुई हैं उनको माफ करना क्षमा करना।
ऐसा ही हमें दैनिक जीवन में भी करना चाहिए यदि कोई गलती हो जाती है तो तुरंत क्षमा
मांग लेना चाहिए।
क्षमा
का महत्व –chhama ka mahatv
क्षमा मांग लेने
से और क्षमा कर देने से स्वयं का ही भला होता है। इस जीवन में हम जिसके साथ जैसा
करते हैं हमें वैसा ही मिलता है। यदि हम किसी के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं तो
उसके बदले में वह हमसे अच्छा व्यवहार करेगा। और यदि किसी के साथ ईर्ष्या,जलन द्वेष आदि भावनाएं होती हैं
तो उसके मन में भी उसी प्रकार की भावनाएं हमारे प्रति होते हैं। एक प्रकार का यह
एक जीवन सिद्धांत भी है कि जैसा करोगे वैसा ही भरोगे। भगवान ने मनुष्य को बहुत
सारी अच्छाइयां दी हैं। अच्छाइयों में एक है परोपकार दूसरों की सहायता करना लेकिन
जब भी व्यक्ति किसी की सहायता करता है तो वह बदले में कुछ पाने के लिए सहायता करता
है। ना चाहते हुए भी मन में एक उम्मीद होती है, कि इस उपकार
के बदले हमें कुछ न कुछ जरूर मिलेगा।
तो इस प्रकार का
उपकार जो इस उम्मीद से ऊपर उठकर हो, जो
दूसरों के लिए अनमोल हो लेकिन मदद करने वालों के लिए सस्ता और आसान हो।
किसी को किसी
गलती के लिए क्षमा करना और आत्मग्लानि से मुक्ति दिलाना बहुत बड़ा परोपकार है।
इसमें क्षमा करने वाला क्षमा पाने वाले से अधिक सुख पाता है।
यदि सोचा जाए तो
छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी गलती को अपने पिछले जीवन में जा करके सुधारा नहीं जा
सकता है। उसके लिए क्षमा से अधिक और कुछ नहीं मांगा जा सकता है। यदि आप किसी की
भूल को माफ कर देते हैं, तो आप उस व्यक्ति की
सहायता तो करते ही हैं। पर साथ में आप स्वयं के लिए भी सहायक होते हैं।
क्षमा करने के
लिए व्यक्ति को अपने अहंकार से ऊपर उठकर के सोचना होता है। जो एक तरह का मुश्किल
काम होता है। ऐसा कार्य केवल एक सहनशील व्यक्ति ही कर सकता है। क्षमा का भाव इस
कहानी के माध्यम से समझा जा सकता है।
एक बार की बात है
भगवान बुद्ध एक गांव के किनारे से गुजर रहे थे। उस गांव के लोग पहले से ही भगवान
बुद्ध को अपना शत्रु मानते थे।जब भगवान बुद्ध गांव के नजदीक पहुंचे तो गांव वालों
ने उन्हें देख लिया और रास्ते में ही उनको घेर लिया। उन लोगों ने भगवान बुद्ध को
बहुत ही अपमानित किया और गालियां दी। भगवान बुद्ध ने सब कुछ सुना और सहन किया। फिर
उनसे कहा कि मित्रों यदि अब तुम्हारी बातें पूरी हो गए हो तो मैं चलूं क्योंकि
मुझे दूसरे गांव जाना है जो काफी दूर है। तब वह लोग बहुत ही हैरान हुए और उन्होंने
पूछा कि हमने आपसे कोई प्रेम पूर्वक बातें नहीं की है हमने आपको लज्जित व अपमानित
किया है फिर भी आपको क्रोध नहीं आया ऐसा क्यों?
तब भगवान बुद्ध
ने कहा कि आपने बहुत देर कर दी यदि आप 10 साल
पहले आए होते तो मैं तुम्हारे साथ ऐसा ही व्यवहार करता और तुम्हें भी अपमानित करता
और तुम पर क्रोध करता।
लेकिन अब मैं इन
सबसे ऊपर उठ चुका हूं और ऐसी जगह पर हूं कि मैं तुम्हारी बोली हुई कटु वाणी को भी
लेने में असमर्थ हूं। तुमने मुझे गालियां दी अपमानित किया लेकिन उनसे क्या होता
है। मुझे भी तो उनको लेने के लिए बराबरी का भागीदार होना चाहिए।
मैं उसे लूं तभी
तो उसका परिणाम हो सकता है। लेकिन मैं तुम्हारी गाली लेता नहीं।
मैं दूसरे गांव
से निकला था वहां के लोग मिठाईयां लाए थे भेंट करने के लिए। लेकिन मैंने कहा कि
मेरा पेट भरा हुआ है तो वह मिठाईयां वापस ले गए मैंने ली नहीं। जब तक मैं न लूंगा
तब तक मुझे कोई कैसे दे सकता है।
महात्मा बुद्ध ने
उनसे पूछा कि वे लोग जो मिठाईयां ले गए हैं उनका उन्होंने क्या किया होगा?
तभी उनमें से एक
आदमी बोला कि वह लोग जब मिठाईयां ले गए होंगे तो उसे अपने परिवार और बच्चों में
बांट दी होंगी।
तो महात्मा बुद्ध
ने कहा लेकिन तुम लोग तो गालियां लाए थे और उन्हें मैंने ली नहीं तुम लोग इनका
क्या करोगे घर जाओगे बांटोगे
मुझे तुम लोगों
पर दया आती है कि अब तुम लोग इन गालियों का क्या करोगे। क्योंकि मैं इन्हें लेता
नहीं। क्योंकि जिसकी आंख खुली है वह गाली लेगा। क्योंकि मैं लेता ही नहीं तो क्रोध
कहां से आएगा। जब मैं इन्हें ले लूं तो क्रोध उठ सकता है। आंखों के रहते हुए मैं
कांटो पर कैसे चलूं और आंखों के रहते हुए मैं गालियां कैसे लूं। और होश में रहते
हुए मैं क्रोध कैसे करूं मैं बहुत दुविधा में हूं मित्रों मुझे माफ करना। आप लोग
गलत आदमी के पास आ गए हैं।
इस कथानक के
द्वारा हमें यह शिक्षा प्राप्त होती है,कि हम जो
किसी को देते हैं वही हम तक वापस आता है। और जो दूसरों को दें और वह नाले तो वह
उन्हीं को वापस चला जाता है।
कोई भी परोपकार करने के लिए सबसे
पहले आवश्यक चीज जो आपके पास होनी चाहिए वह है खुशी। हर इंसान को कोई भी कार्य
करने से पहले अपनी खुशी देखना चाहिए। यह सुनने में अजीब लगता है कि खुशी पहले कैसे
रखें।जबकि हम लोग पहले से ही सुनते आए हैं कि अपनी खुशी को हटा करके दूसरों की
खुशियों को देखना चाहिए। तो परोपकार कैसे होगा क्योंकि दोनों एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत है।
इसका उत्तर है कि
यदि आप किसी कारण से किसी का परोपकार कर रहे हैं तो वह परोपकार है ही नहीं।
परोपकार तो वह
होता है जिसने कुछ पाने की भावना ना हो केवल उपकार किया जाए किसी की सहायता की जाए,
किसी की मदद की जाए यह एक आंतरिक भावना होती है।
आप दूसरों को
खुशी तभी दे सकते हैं जब आप स्वयं खुश होंगे। क्योंकि एक प्रशिक्षित व्यक्ति दूसरे
व्यक्ति को अधिक देर तक दुखी नहीं देख सकता। एक हारा हुआ व्यक्ति दूसरे जीतने वाले
व्यक्ति को सच्चे मन से बधाई नहीं दे सकता। इसके पीछे उसकी कोई दुर्भावना नहीं
होती बल्कि अपनी आत्मग्लानि होती है। इसीलिए किसी का कल्याण करने की पहली सीढ़ी है
अपने मन की संतुष्टि और क्षमा करने में यही प्रक्रिया लागू होती है। क्षमा करना
अंधेरे में उजियारा करने की भांति होता है।क्षमा कर देने से सामने वाले व्यक्ति के
प्रति मन में ईर्ष्या का भाव समाप्त हो जाता है जिसमें स्वयं के लिए भी लाभ मिलता
है।
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